जो बच्चा अपने भविष्य के विषय में सोचता है। वह हमेशा उसे पाने के लिए प्रयास करता रहता है। अपने लक्ष्य को पाने के लिए बच्चा नए-नए तरीकों को खोजता रहता है तथा उसके लिए मेहनत करता रहता है लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है की पूरी मेहनत से किया हुआ प्रयास भी विफल हो जाता है। जिसके कारण बच्चे के मन में निराशा भर जाती है बच्चा मेहनत करने से घबराने लगता है और अपने मन में दुर्बल महसूस करने लगता है।
माता-पिता को अपने बच्चे की तरफ ध्यान रखना चाहिए। अपने बच्चे की सभी गतिविधियों को ध्यान पूर्वक देखना चाहिए और जब भी उन्हें ऐसा लगे कि गतिविधियां सामान्य नहीं है तो बच्चों से बात करनी चाहिए कई बार ऐसा होता है। कि बच्चा अपने मन में निराश होता है पर वह अपने माता-पिता से नहीं कह पाता इसलिए माता-पिता की यह जिम्मेदारी है कि बच्चे की मनोदशा को समझें। यदि बच्चा अपने मन में दुर्बल महसूस कर रहा है तो सिर्फ प्रेरित करने का प्रयास करें बच्चे को प्रेरणा देने से बच्चे की मन की निराशा कम होती है और उसमें कुछ करने का उत्साह जागता है।
इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बच्चे को प्रेरित करने के 25 तरीकों के विषय में बताएंगे। यदि आपके घर में भी कोई ऐसा बच्चा है जो निराश तथा हताश हो गया है और आप उसे प्रेरित करना चाहते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए है। इस आर्टिकल को पूरा करके आप बच्चे को प्रेरित करने के विभिन्न तरीके जान सकते हैं।
बच्चों व विद्यार्थियों को प्रेरित करने के 25+ तरीके | (Bache Ko Motivate Kaise Karein)
बच्चे अपने आसपास के माहौल के हिसाब से सीखते हैं बच्चे जिस चीज को देखते रहते हैं धीरे-धीरे उन्हें ग्रहण करने लगते हैं और फिर वैसा ही करने का प्रयास करने लगते हैं इस कारण बच्चे पर माहौल का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
यदि बच्चे का किसी भी कार्य को करने मैं मन नहीं लगता है माता-पिता को बच्चों से बात करनी चाहिए और उसकी उदासी का कारण पूछना चाहिए नीचे हमने आपको विद्यार्थियों को प्रेरित करने के 25 तरीके बताएं हैं।
खुद की सहभागिता –
माता-पिता यदि बच्चे को किसी कार्य के लिए प्रेरित करना चाहते हैं तो इसका सबसे अच्छा विकल्प माता-पिता की खुद की सहभागिता है इस विचार को हम उदाहरण के माध्यम से समझते हैं यदि बच्चा बैडमिंटन खेलना पसंद करता है तथा मैं अपना लक्ष्य बैडमिंटन में बनाना चाहता है परंतु कुछ समय से उसने बैडमिंटन खेलना बंद कर दिया है तो माता-पिता को इस चीज पर ध्यान देना चाहिए और खुद बैडमिंटन खेल कर बच्चे को अपने साथ खिलाना चाहिए अपने पिता को अपने साथ खेलता देख बच्चा भी खेलने के लिए प्रेरित होगा और उसके मन से निराशा के भाव दूर जायेंगे।
हर प्रयास की करें प्रशंसा –
बच्चे के द्वारा किए गए प्रयासों की प्रशंसा माता-पिता को करनी चाहिए और उन्हें आगे और मेहनत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए यदि बच्चे ने किसी प्रतियोगिता में भाग लिया है सदा व्यवसाय जी नहीं पाया तो माता-पिता को निराश नहीं होना चाहिए मां अपने बच्चे को यह समझाना चाहिए कि कितने और बच्चों ने प्रतियोगिता में भाग तक नहीं लिया इसलिए बच्चे को यह बताना चाहिए कि बच्चा कितना स्पेशल है और वह आगे मेहनत करके इस प्रतियोगिता को जीत ही सकता है।
बच्चे की प्रशंसा करने से बच्चे के मन में निराशा के भाव नहीं लगेंगे और वह आगे होने वाली प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेगा और जीतेगा भी।
नई चीजें सिखाएं-
यदि बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है तो माता-पिता को बच्चों पर पढ़ाई के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए। इससे बच्चा अपने मन में डर बैठा सकता है और वह अंदर से निराशा महसूस कर सकता है। यदि बच्चा पढ़ना पसंद नहीं करता तो माता-पिता को उसकी रूचि के विषय में जानना चाहिए जैसे यदि वह खेलना पसंद करता है तो बच्चे को समझाना चाहिए कि वह खेल मैं किस प्रकार अपना भविष्य बना सकता है। बच्चे को इस कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए कि वह खेल के क्षेत्र में और मेहनत करके अपने भविष्य को सुधार सकता है। इस तरीके से बच्चे को नई चीजें से खाकर बच्चों को प्रेरणा दी जा सकती है और उन्हें निराशा से दूर रखा जा सकता है।
रिवार्ड दें –
छोटे बच्चों का मन कोमल होता है उन्हें गिफ्ट बहुत पसंद होते हैं किसी अच्छे काम को करने के बाद उनके मन में हमेशा यह रहता है कि उन्हें गिफ्ट दिया जाए जब भी बच्चा किसी प्रतियोगिता में पास होता है। अथवा कक्षा में अच्छे ग्रेड चलाता है तो माता-पिता को बच्चे को बच्चे का मनपसंद गिफ्ट देना चाहिए। बच्चे को अच्छे काम के लिए गिफ्ट मिलने पर बच्चा अगली बार भी अच्छा प्रयास करने की कोशिश करता है माता-पिता को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को कभी भी अवार्ड की आदत नहीं लगनी चाहिए। बच्चे को गिफ्ट जरूरी मौकों पर ही देना चाहिए तथा यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे का गिफ्ट उसकी पढ़ाई से संबंधित हो।
बच्चे के रोल मॉडल बनें –
माता पिता अपने बच्चे को जिस प्रकार का बनाना चाहते हैं। उसी प्रकार का व्यवहार माता-पिता को भी अपने बच्चे के सामने करना चाहिए क्योंकि बच्चे का मन कोमल होता है और वह दूसरों को जैसी चीजें करता देखता है उसे वैसे ही दोहराने का प्रयास करता है। इसी कारण सभ्य माता-पिता के बच्चे सब दे होते हैं और असभ्य माता-पिता के बच्चे सब होते हैं इन्हीं को संस्कार कहा जाता है।
माता पिता अपने बच्चे को जिस प्रकार का जीवन देना चाहते हैं। बच्चे के सामने वही कार्य उन्हें करना चाहिए बच्चे के लिए उसके माता-पिता एक रोल मॉडल की तरह होनी चाहिए। रोल मॉडल वह होता है जिसके अनुसार ही बच्चा आगे जीवन जीने का प्रयास करता है। बच्चा अपने रोल मॉडल की तरह ही देखना चाहता है और बनना चाहता है उनकी तरह ही व्यवहार करना चाहता है इसलिए कोशिश करना चाहिए कि यदि आप बच्चे के रोल मॉडल बने तो आप हर चीज बच्चे के लिए परफेक्ट रूप से दिखाएं। इससे बच्चा अपने जीवन में बहुत अधिक ऊंचाइयां हासिल कर सकता है।
हौसला बढ़ाएं-
बच्चे ने यदि किसी कार्य को करने का प्रयास किया है और वह उसमें सफल नहीं हो पाया तब माता-पिता की यह जिम्मेदारी रहती है कि वह अपने बच्चे को निराश ना होने दें बल्कि उसका हौसला बढ़ाएं उसे यह समझाने का प्रयास करें कि जीवन में हर चीज पहली बार में मिल जाए यह जरूरी नहीं होता। किसी चीज को पाने के लिए बार-बार मेहनत करना बहुत आवश्यक है क्योंकि जीवन एक कठिन परीक्षा होती है और परीक्षा में हर बार पास हो जाना जरूरी नहीं होता जितनी ज्यादा मेहनत की जाती है। वैसा ही परिणाम प्राप्त होता है इसलिए व्यक्ति को आगे बढ़ते रहने के लिए कभी भी हिम्मत नहीं आनी चाहिए। माता-पिता को बच्चे के अंदर के डर को बाहर निकालना है और उसे हर परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार करना है।
यदि माता-पिता के द्वारा समझाइए बातें बच्चे के संबंध में आ जाती हैं तो वह कभी भी अपने जीवन में पीछे मुड़कर नहीं देखेगा और अपने भविष्य में एक बेहतर इंसान बनकर दिखाएगा।
सकारात्मक रवैया रखें-
बच्चे को कभी भी डांट फटकार कर या डराकर नहीं रखना चाहिए इससे बच्चे के मन में नकारात्मक भाव पैदा हो सकते हैं तथा बच्चे के मन में हीन भावना जागृत हो सकती है। यदि माता-पिता हमेशा बच्चे को डांटते रहते हैं तो बच्चा कभी भी किसी नए कार्य को करने मैं दिलचस्पी नहीं दिखाएगा। उसके मन में यह बात बैठ जाएगी कि वह कितना ही अच्छा कार्य कर ले उसके माता-पिता उसे कभी भी शाबाशी नहीं देंगे।
इसलिए माता-पिता को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर बच्चा कोई गलती भी कर रहा है तो उसे आराम से बैठकर समझाना चाहि।ए यह कार्य किस प्रकार किया जा सकता है अगर वह किसी कार्य में विफल हुआ है तो उसे डांटना नहीं चाहिए बल्कि भविष्य में और मेहनत करके उस कार्य को दोबारा सफल बनाने के प्रयास करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। सकारात्मक रवैया से बच्चे का मन कभी भी निराश नहीं होता तथा वह अपने जीवन में लगातार मेहनत करने के लिए प्रेरित होता है।
सीखने की क्षमता समझे-
हर बच्चा दूसरे बच्चे से अलग होता है किसी भी बच्चे की किसी दूसरे बच्चे के साथ तुलना नहीं करनी चाहिए। हर बच्चे के अंदर की प्रतिमाएं उनके अंदर की सीखने की क्षमता अलग-अलग होती हैं इसलिए यह पेरेंट्स की है जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चे के अंदर की सीखने की क्षमता को पहचाने। बच्चे पर फालतू का जोर दबाव डालने से भी बच्चा अपनी कैपेसिटी से अधिक नहीं सीख पाए गा इसलिए बच्चे की क्षमता को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए ना कि उस पर डांट फटकार कर पढ़ाई का जोर डालना चाहिए।
बच्चे को प्रसिद्ध हस्तियों के उदाहरण के माध्यम से समझाना चाहिए। उन्हें यह बताना चाहिए कि ज्यादा तेज दिमाग या ज्यादा तेज सीखने की कला ही व्यक्ति को सफल नहीं बनाते बल्कि आराम से धीरे-धीरे मेहनत करके भी किस प्रकार व्यक्ति अपने जीवन में सफल हो सकता है। इसके विषय में उसे बताना चाहिए जिससे बच्चा कभी भी अपने आपको दूसरों से पीछे ना समझें।
शेड्यूल बनाएं –
बच्चे को पूरे दिन में किस समय क्या कार्य करना है इसकी पहले से की गई प्लानिंग को शेड्यूल कहते हैं। बच्चे के सुबह उठने के समय के बाद से रात को सोने के समय तक बच्चा पूरे दिन में किस कार्य को कितने समय करेगा यह पहले से निर्धारित होना चाहिए। शेड्यूल बनाने से बच्चे के जीवन में किसी भी प्रकार का असमंजस नहीं रह जाता बच्चे के दिमाग में यह पहले ही बैठ जाता है कि उसे किस समय क्या करना है। शेड्यूल इस प्रकार से संतुलित होना चाहिए कि बच्चे का खेलने खाने सोने सभी का समय बिल्कुल सही होना चाहिए।
बच्चे की पढ़ाई के साथ-साथ उसके मनोरंजन का भी ध्यान इस शेड्यूल में रखना चाहिए। जिससे बच्चा कभी भी बहुत महसूस ना करें शुरू शुरू में टाइम टेबल को निभाने में थोड़ी परेशानी हो सकती है। परंतु एक बार उसकी आदत लग जाने के बाद यह जीवन में बहुत कारगर साबित हो सकता है।
बच्चों की बात भी सुनें –
यदि बच्चे से कोई गलती हुई है और माता-पिता बच्चे को समझाते हैं तो पेरेंट्स की है जिम्मेदारी है कि अपनी बात कहने के बाद उन्हें बच्चे की बात को भी उतनी ही गंभीरता से सुनना चाहिए बच्चा क्या कहना चाह रहा है और उसके मन में क्या है। इस बात को जानना बहुत अधिक आवश्यक है। इससे बच्चे की मनोदशा के विषय में जानकारी मिलती है कि वह अपने मन में क्या सोच रहा है।
पेरेंट्स को कभी भी यह रवैया नहीं अपनाना चाहिए कि वह अपनी बात बच्चे को बताना चाहते हैं। परंतु बच्चे की बात को सुनना नहीं चाहते इससे बच्चे के मन में यह आ सकता है। किसकी बात को सुनने वाला कोई नहीं है हो सकता है बच्चा आपसे अपनी परेशानी के विषय में बात करना चाहता हूं यदि आपको बच्चे की परेशानी पता चल पाएगी। तभी आप उसे सुधारने का प्रयास कर पाएंगे इसलिए बच्चे की बात को पूरी गंभीरता के साथ ध्यान से सुनना चाहिए।
फेल होने पर गुस्सा न करें –
यदि बच्चे ने किसी प्रतियोगिता में भाग लिया है और उसके कम अंक आए हैं या फिर पढ़ाई में कम ग्रेड होने से या बच्चे के फेल हो जाने पर बच्चा खुद ही बहुत अधिक दबाव में होता है। बच्चे के फेल हो जाने पर माता-पिता को कभी भी उसे डांटना या मारना नहीं चाहिए। जब बच्चे का मन शांत हो जाए तो आराम से बच्चे से बात करनी चाहिए और किस वजह से वह इस स्थिति में आया है इसके बारे में पूछना चाहिए हो सकता है। बच्चे के मन में कोई परेशानी हो जिसकी वजह से वह अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान ना दे पा रहा हो।
यदि पेरेंट्स भी बच्चे को मारने या डांटने लगेंगे तो बच्चा और ज्यादा दबाव में आ सकता है। ज्यादातर हमने न्यूज़ में पड़ा है कि बच्चा फेल हो जाने के कारण आत्महत्या जैसी नशंस कदम भी उठा लेता है। इसलिए माता-पिता को बहुत ही संस्था के साथ बच्चे से बात करनी चाहिए उसे यह समझाना चाहिए कि वह आगे भी मेहनत करके अपने जीवन को सुधार सकता है। फेल होने पर ही सब कुछ खत्म हो नहीं हो जाता।
लालच न दें –
बच्चे को किसी कार्य को करवाने के लिए कभी भी लालच नहीं लेना चाहिए। यदि किसी कार्य को करवाने से पहले आप बच्चे के मन मैं चॉकलेट, टॉफी का लालच भर देंगे तो बच्चे का ध्यान आपके दिए जाने वाले उपहार पर होगा ना कि उस कार्य पर यदि बच्चे को बार बार लालच दिया जाएगा तो उसकी आदत लग सकती है। वह किसी भी कार्य को करने से पहले किसी ना किसी उपहार की मांग करने लगेगा इससे बार बालक का व्यवहार लालची हो सकता है।
यदि बच्चे को पढ़ाई करने के लिए कहेंगे तब भी बच्चा किसी गिफ्ट की उम्मीद रखेगा। इसलिए बच्चे का पढ़ाई करने के लिए एक शेड्यूल होना चाहिए जिसमें कभी भी किसी तरीके की नई चीजें समय समय पर नहीं जोड़ने जाएंगे और ना ही अधिक से अधिक उपहार बच्चे को भेंट करने चाहिए। समय-समय पर जब कोई अच्छा कार्य बच्चे के द्वारा किया गया हो तो उसकी सराहना के लिए उसकी पढ़ाई से संबंधित उपहार दे देनी चाहिए जिससे बच्चा प्रेरित हो।
तारीफ करें-
जब भी बच्चे के द्वारा कोई अच्छा कार्य किया जाए तो हमेशा बच्चे की तारीफ करनी चाहिए। तारीफ़ से बच्चे का मनोबल बढ़ता है और बच्चा किसी और अच्छे कार्य को पूरी मेहनत से करने का प्रयास करता है। बच्चा अपने आप को इस काबिल समझता है कि वह किसी भी मुश्किल से मुश्किल काम को आसानी से कर पाता है।
यदि बच्चे के पेरेंट्स बच्चे की तारीफ करते हैं तो बच्चे के मन में यह भावना जागृत होती है कि वह किस प्रकार अपने माता-पिता को प्राउड महसूस करवा रहा है और बच्चा और बहुत सारे अच्छे काम करने का याद करता है। इसलिए बच्चे की तारीफ जरूर करनी चाहिए परंतु तारीफ सीमित हो जिससे बच्चा कभी भी अपने मन में घमंड की भावना ना लाने पाए। यदि बच्चा घमंडी हो जाता है तो उसका विनाश निश्चित हो जाता है इसलिए अपने बच्चे को संतुलित रखने का प्रयास करें।
तुलना ना करें-
हर बच्चे की किसी कार्य को करने की क्षमता या याद करने की क्षमता अलग-अलग होती है इसलिए माता-पिता को कभी भी दूसरे बच्चों से अपने बच्चे की तुलना नहीं करनी चाहिए। हर बच्चे के कार्य करने का ढंग उसके कार्य करने की कैपेसिटी अलग-अलग होती है। माता-पिता किसी दूसरे से तुलना इसलिए करते हैं कि उन्हें देखकर हमारा बच्चा भी मोटिवेट हो और वह भी अपने जीवन में कुछ अच्छा काम करें परंतु इसका उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है।
बच्चा अपने आप की तुलना जब दूसरे बच्चों से करने लगता है तो वह अपने आप को कम आपने लगता है हो सकता है। उसके मन में हीन भावना जागृत होने लगी और वह यह समझने लगी कि वह कितना कमजोर है इसलिए पेरेंट्स को यह ध्यान रखना चाहिए कि अपने बच्चे की कैपेसिटी पर भी जोड़ देना चाहिए। बच्चों को यह ध्यान दिलाना चाहिए कि उसने अपने जीवन में कितनी सारी सफलताएं प्राप्त किए हैं और वह आगे भी बहुत सारी सफलताएं ग्रहण कर सकता है।
जरूरत का रखें ख्याल-
माता-पिता को अपने बच्चे की हर जरूरत का ख्याल रखना चाहिए। यदि बच्चे को समय-समय पर अपने उपकरण प्राप्त होते रहेंगे तो वह कभी भी किसी कार्य को करने से पीछे नहीं हटे गा। माता-पिता को पढ़ाई से संबंधित सभी उपकरण बच्चे को उपलब्ध कराने चाहिए यदि बच्चा खेल में रुचि रखता है। तो खेल से संबंधित उपकरण माता-पिता को बच्चे को जलाने चाहिए जिससे बच्चे के खेलने में कभी कोई रुकावट ना आए।
कभी-कभी साधनों के अभाव के कारण बच्चे बहुत सारे कार्य को करने से कतराते हैं यदि बच्चा किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लेगा तो वह कितना काबिल है। इस बात का अनुमान कभी भी नहीं लगाया जा सकेगा इसलिए अपने बच्चे को हर प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित करें और यह भरोसा दिलाएं कि आप उसके प्रयासों के साथ हमेशा खड़े हैं।
परेशानियों का करने दें सामना –
कुछ पेरेंट्स अपने बच्चे के लिए इतनी ज्यादा प्रोटेक्टिव होते हैं कि वह अपने बच्चे को किसी भी तरीके की परेशानी का सामना नहीं करने देते। बच्चे के सामने परेशानी आने पर माता-पिता उसे अपने ऊपर ले लेते हैं और उसे तुरंत हल कर देते हैं। पेरेंट्स की है आदत बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकती है।
जीवन में यह जरूरी नहीं कि बच्चे के पेरेंट्स बच्चे के साथ हमेशा रहे इसलिए बच्चे को अकेले फैसले लेने देना चाहिए। यदि बच्चे के सामने किसी भी प्रकार की परेशानी आती है तो बच्चे को उसका हल निकालने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जीवन में बहुत सारी परेशानियां बच्चे को देखने को मिलेंगे और उन परेशानियों का हल बच्चों को खुद ही निकालना पड़ेगा। इसलिए माता पिता को इस परिस्थिति में पीछे रहना चाहिए और यदि दिक्कत बढ़ जाए तब उसे हल करने का प्रयास करना चाहिए।
ऐसा करने से बच्चा अपने जीवन में बहुत मजबूत बनता है एवं मैं जीवन में आने वाली किसी भी प्रकार की परिस्थिति का सामना मजबूती से कर पाता है।
व्यायाम की आदत डालें-
पेरेंट्स को अपने बच्चे के लिए बचपन से ही व्यायाम की आदत डालनी चाहिए व्यायाम से शरीर तो मजबूत होता ही है। इसके साथ-साथ बच्चे का मन भी बहुत मजबूत होता है बच्चा शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ रहता है। उसके सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है।
बच्चे को सभी प्रकार की शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बच्चे को खेलकूद जैसे गेम्स में भाग लेने के लिए कहना चाहिए जिससे बच्चे के अंदर फुर्ती हो बच्चा कभी भी आलसी नहीं होना चाहिए। यदि बच्चे के अंदर आलस है तो वह अपने जीवन में बहुत सारी चीजें को पाने में असफल हो सकता है इसलिए बच्चे को व्यायाम अवश्य कराना चाहिए।
पर्याप्त नींद है जरूरी-
बच्चे को कभी भी पढ़ाई के चक्कर में उसकी नींद के साथ कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। नींद स्वास्थ्य का एक हिस्सा है नींद पूरे होने पर ही बच्चे का स्वास्थ्य ठीक बना रह सकता है इसलिए बच्चे को 8 घंटे की पर्याप्त में जरूर लेना चाहिए। पर्याप्त नींद लेने से बच्चा तरोताजा महसूस करता है और उसका दिमाग भी बिल्कुल सही प्रकार से काम करता है।
बच्चे को कभी भी छोटी उम्र में फोन नहीं देना चाहिए फोन से बच्चा सारी चीजों के विषय में जानकारी प्राप्त करता है। जिन चीजों के विषय में बच्चे को जानकारी नहीं होनी चाहिए उसे भी वह फोन के माध्यम से प्राप्त कर लेता है। इसलिए बच्चे को फोन से दूर रखना चाहिए और यदि उससे कोई जरूरत है तो अपने सामने उसे फोन चलाने की आज्ञा देनी चाहिए।
चेकिलिस्ट तैयार करें –
बच्चे को हर दिन के लिए टारगेट देना चाहिए उस टारगेट को पूरा करने के लिए बच्चे को बार बार प्रेरित करना चाहिए तथा शाम को सोते समय बच्चे की चेक लिस्ट को देखना चाहिए कि बच्चे ने अपने टारगेट को पूरा किया है या नहीं। यदि बच्चे ने अपने टारगेट को पूरा किया है तो उसे शाबाशी देनी चाहिए यदि वह अपने टारगेट को पूरा नहीं कर पाया है तब उसे अगले दिन के लिए डबल मेहनत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस तरह चेक लिस्ट तैयार करके बच्चों की पढ़ाई को पूरी तरीके से मेंटेन किया जा सकता है। बच्चे के सिलेबस को पूरा किया जा सकता है जिससे वह अपनी पढ़ाई में बेहतर तरीके से परफॉर्म कर सकता है।
असफलता से ना होने दे निराश-
बच्चा यदि किसी प्रतियोगिता में भाग लेता है या वह कक्षा में ग्रेड कम लाता है तो बच्चे को कभी भी निराश नहीं होने देना चाहिए। बच्चे को यह समझाने का प्रयास करना चाहिए कि जीवन बहुत बड़ा है और जीवन आपको बहुत सारे मौके देता है बस व्यक्ति को मौके को भुनाने की कला होनी चाहिए।
बच्चे को यह समझाना चाहिए की एक असफलता से जिंदगी समाप्त नहीं हो जाती जीवन में कितनी मेहनत करने के बाद भी कभी-कभी सफलता प्राप्त नहीं होती। इसलिए व्यक्ति को लगातार मेहनत करती रहनी चाहिए और सफलता पाने का प्रयास करना चाहिए।
इमोशनल सपोर्ट-
यदि बच्चा किसी वजह से या किसी असफलता से निराश है। और अपने मन में डिमोटिवेट महसूस कर रहा है तो बच्चे से बात करनी चाहिए माता-पिता को बच्चे से यह समझाना चाहिए कि जीवन में आने वाली समस्याएं निराश होकर नहीं झेली जा सकती। उनका हल निकाल कर उन्हें सुधार कर जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। आप बच्चे को हर प्रकार से सपोर्ट करने का प्रयास करें जिससे बच्चा कभी भी अकेला महसूस ना करें एवं उसे कभी यह ना लगे कि उसकी मुसीबत के समय उसके साथ कोई भी नहीं है।
पेरेंट्स को हमेशा यह प्रयास करना चाहिए कि वह अपने बच्चे को किसी भी प्रकार के तनाव से दूर रखें तनाव बच्चे को मन से दुर्बल बना देता है। तनाव की वजह से बच्चा किसी भी कार्य में मन नहीं लगा पाता और वह सारे कार्य से पिछ्रता रहता है इसलिए माता-पिता को हमेशा बच्चे की गतिविधियों पर ध्यान रखना चाहिए। यदि बच्चे की गतिविधियों में किसी प्रकार की समस्या देखने को मिल रही है। तब तुरंत माता-पिता को बच्चों से बात करनी चाहिए बच्चे की समस्या का कारण जानना चाहिए एवं उसके निवारण करने का प्रयास करना चाहिए।
तनाव की वजह से बच्चे के मन में बहुत सारे बुरे ख्याल आ सकते हैं इसलिए बच्चे की परेशानियों का हमेशा माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए।
ग्रुप डिस्कशन के लिए प्रेरित करें-
जब बच्चे एक ग्रुप में बैठकर सभी सहपाठियों के साथ पढ़ते हैं तो उन्हे एक टॉपिक को सही प्रकार से समझ में आता है। ग्रुप डिस्कशन के माध्यम से बच्चे अपने कांसेप्ट को ठीक प्रकार से क्लियर कर पाते हैं। ग्रुप डिस्कशन के द्वारा बच्चे अपने मन में आने वाले प्रश्न को तुरंत पूछ सकते हैं इससे बच्चों के डाउट तुरंत ही सॉल्व हो जाते हैं। ग्रुप डिस्कशन में हर बच्चे के समझाने का तरीका अलग अलग होता है जिससे बहुत सारे माध्यमों से एक कांसेप्ट को समझाया जा सकता है।
एक ग्रुप में बैठकर पढ़ने से बच्चे बोर महसूस नहीं करते और खेल खेल में अपने पूरे पाठ्यक्रम को ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। बच्चे में ज्ञान की वृद्धि होने से बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है।
असफलता को सफलता में बदलना सिखाएं –
जब व्यक्ति असफल होता है तब वह अपनी असफलता से बहुत कुछ सीख सकता है। व्यक्ति की सफलता व्यक्ति को जीवन के इतने गुण नहीं सिखाती जितना व्यक्ति की असफलता उसे सिखा जाती है। असफल होने पर बच्चे को यह समझ आ जाता है कि उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में क्या गलती की है। असफल व्यक्ति दूसरे के लिए प्रेरणा दे सकता है वह दूसरों को यह बता सकता है कि किन लोगों को ना करके व्यक्ति सफल हो सकता है।
बच्चे को प्रेरणा देकर यह बताया जा सकता है कि अधिक मेहनत करके दोबारा प्रयास करने पर व्यक्ति सफल हो सकता है और जीवन में बहुत ऊंचे मुकाम हासिल कर सकता है।
धैर्य रखें –
बच्चे के किए गए प्रयासों का रिजल्ट पाने के लिए माता-पिता को धैर्य रखना जरूरी नहीं होता कि तुरंत ही बच्चे के द्वारा किए गए प्रयास सफल हो जाएं इसलिए लगातार मेहनत करते रहना चाहिए। बच्चे के द्वारा किए गए छोटे छोटे प्रयासों की माता पिता को तारीफ करनी चाहिए। बच्चे छोटे प्रयासों के लिए प्रेरित करना चाहिए और बच्चे को धैर्य करना सिखाना चाहिए इससे बच्चा तुरंत ही फल की कामना नहीं करेगा और लगातार मेहनत करना सीखता रहेगा।
डाइट से समझौता नहीं –
बच्चे का शरीर हमेशा स्वस्थ होना चाहिए एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग का निवास होता है। स्वस्थ शरीर के द्वारा बच्चे का पढ़ाई में मन लग पाएगा और वह पूरे दिमाग से किसी कार्य को कर पाएगा। किसी व्यक्ति के शरीर में यदि कोई कमी होती है तो बच्चे का ध्यान अपने शरीर की समस्या पर ही लगा रहता है। इसलिए कभी भी बच्चे की डाइट के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए उसे स्वस्थ से स्वस्थ आहार प्रदान करना चाहिए। जिससे कभी भी बच्चे के शरीर में कोई बीमारी नहीं लग पाए।
पेरेंट्स को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को एक पोषण आहार दिलाना चाहिए जिससे बच्चे का दिमाग विकसित हो क्योंकि जब बच्चा बड़ा हो रहा होता है। सबसे ज्यादा उसका दिमाग का विकास होता है इसलिए दिमाग को विकसित करने वाले आहार बच्चे के खाने में शामिल करने चाहिए।
दोस्ती का रिश्ता कायम करें –
माता पिता को हमेशा बच्चे के साथ दोस्ती का रिश्ता कायम करना चाहिए व्यक्ति के जीवन में दोस्त के बहुत बड़े मायने होते हैं। दोस्त वह व्यक्ति होता है जिससे अपने मन की सारी बातें की जा सकती है। किसी भी बात को कहने से पहले सोचने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसलिए माता-पिता को भी अपने बच्चे के साथ ऐसा ही व्यवहार रखना चाहिए। जिससे बच्चे अपने मन की परेशानी बता दो था बेझिझक अपने पेरेंट्स के साथ बता सकें।
आज के कॉन्पिटिटिव युग में व्यक्ति के मन में बहुत सारी धाराएं होती हैं। कुछ परेशानियां ऐसी होती हैं जो माता-पिता के सख्त बर्ताव के कारण बच्चा बता नहीं पाता। इसलिए बच्चे के साथ हमेशा दोस्ताना व्यवहार करके बच्चे की मन की दशा को समझने का प्रयास करें। यदि बच्चे के मन में कोई परेशानी या समस्या है तो उससे बात करने की कोशिश करें और उसे दिलासा दिलाएं कि उसके माता-पिता बच्चे के हर फैसले के साथ खड़े हैं। और उसकी हर समस्या का समाधान कर सकते हैं।
निष्कर्ष
इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको बच्चों को प्रयोग करने के 25 से ज्यादा तरीकों के विषय में बताया है। यदि आपके परिवार में भी कोई ऐसा बच्चा है जो निराश रहता है। उसे प्रेरित करने के लिए आप इनमें से कोई भी तरीका अपना कर देख सकते हैं।
आर्टिकल से संबंधित यदि कोई भी प्रश्न आपके मन में है तो आप नीचे दिए हुए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं। हमें आपका उत्तर देने में खुशी होगी हमारा आर्टिकल पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।