बच्चों का बचपन बहुत ही कोमल होता हैं। वह अपने बचपन में बहुत सारी नई-नई चीजों को एक्सपीरियंस करते हैं क्योंकि वह उनके जीवन का सबसे शुरुआती फेस होता हैं। इसमें बच्चों का खान-पान अलग होता है और उसे बहुत जल्दी-जल्दी बीमारियों से ग्रसित होना पड़ता हैं। बचपन में बच्चों को कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं उसके विषय में अक्सर जानकारी की (Bacho me diseases) अभाव के कारण हम बच्चे को बीमारियों से नहीं बचा पाते ।
इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बचपन की बीमारियां और टीके (Bacho me diseases aur teeke) के विषय में जानकारी देंगे। यदि आप भी विषय में जानकारी चाहते हैं तो हमारे आर्टिकल को अंत तक पढ़े।
टीके क्या होते हैं?
पीके उन्हें कहा जाता है (Teeke kya hai )जब शरीर में किसी भी तरीके की बीमारी से लड़ने के लिए शरीर के अंदर पहले से ही एंटीबॉडीज उपस्थित होती हैं। जो शरीर को उसे बीमारी से लड़ने में मदद करती है। तक इन्हीं और एंटीबॉडीज को प्रोड्यूस करने का काम करते हैं।
टीको में बीमारियों को ग्रसित करने वाला हल्के वेरिएंट का वायरस पाया जाता है। जो शरीर के अंदर इंजेक्ट किया जाता है। यह वाइरस हमारे शरीर में उसे बीमारी के प्रति एंटीबॉडीज का प्रोडक्शन करता हैं। और हमारे शरीर को बीमारी से ग्रसित नहीं करता।
जब इस बीमारी का बड़ा वेरिएंट हमारे शरीर को ग्रसित करता हैं। तब शरीर के अंदर उपस्थित एंटीबॉडीज हमारे शरीर को उसे बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं। इस प्रकार ठीक के बहुत उपकारी होते हैं और इनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है।
अनिवार्य तक किन बीमारियों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं?
भारत सरकार और भारतीय बाल चिकित्सा अकैडमी बच्चों को अनिवार्य रूप से कुछ तक लगाने के लिए कहती है। जिनके विषय में नीचे जानकारी प्रदान की गई।
- बीसीजी टीका – तपेदिक (टीबी) के लिए
- डीटीपी टीका- डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस (काली खांसी) के लिए
- हेपेटाइटिस ए टीका – हैपेटाइटिस ए के लिए
- हेपेटाइटिस बी टीका – हैपेटाइटिस बी के लिए
- एचआईबी टीका – हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी के लिए
- एमएमआर – खसरा (मीजल्स), मम्प्स (कंठमाला का रोग), रुबेला (जर्मन खसरा) के लिए
- ओपीवी (पोलियो की ओरल ड्रॉप्स) और आईपीवी (पोलियो का इंजेक्शन) – पोलियो के लिए
- रोटावायरस टीका – रोटावायरस के लिए
- टाइफाइड संयुग्म (कॉन्जुगेट) टीका – मोतीझरा (टाइफाइड) के लिए
1.तपेदिक (टीबी)
टीवी एक विषाणु जनित रोग होता है। टीवी हमारे शरीर के फेफड़े को सबसे पहले ग्रसित करता हैं। टीवी को ग्रसित करने वाला वायरस माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोस होता है। व्यक्ति के फेफड़े को डायरेक्ट इनफैक्ट करता है।
जिसके कारण रोगी को तेज खांसी बलगम और खांसी में खून आना बुखार छाती में दर्द सांस ना बैठना आदि। तरीके की समस्याएं टीवी में होती हैं। यदि यह लक्षण बच्चों के अंदर दिखाई दे रहे हैं तो यह समझ जाना चाहिए कि बच्चा टीवी से ग्रसित है।
टीवी से लड़ने के लिए बीसीजी के तक का इस्तेमाल किया जाता है। परंतु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीसीजी का टीका पूरी तरीके से टीवी की बीमारी से लड़ने में मदद नहीं करता। यह शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करता है जिससे टीवी मरीज को ज्यादा सीवर तरीके से ग्रसित कर सकता है।
टीवी की बीमारी खांसने और सीखने से फैलती है इसलिए इस बीमारी से बचने के लिए मरीज से दूर रहना चाहिए। यदि टीका लगवाने के बाद भी परिवार के किसी व्यक्ति को टीवी है। तो मरीज को भी टीवी हो सकती है इसलिए इस बीमारी से बचाव करना ही सबसे उचित उपाय होता है।
2.हेपेटाइटिस बी
हेपेटाइटिस बी लीवर में होने वाला इंफेक्शन होता हैं। यह लीवर को बहुत ज्यादा डैमेज करता हैं। और लीवर को क्षति पहुंचती हैं। हेपेटाइटिस धीरे-धीरे शरीर की इम्युनिटी को कमजोर करता है और रक्त को भी इनफेक्टेड कर देता है हेपेटाइटिस की बीमारी होने पर हमारे लीवर में इंफेक्शन हो जाता है।
जिसके कारण हमारे शरीर में जूस सही प्रकार से सीक्रेट नहीं हो पाए और हमारी बॉडी की फंक्शनिंग इरेगुलेट हो जाती हैं। यदि माता को हेपेटाइटिस बी की समस्या होती हैं। तो माता से बच्चों के अंदर यह समस्या संक्रमित हो जाती हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि किसी व्यक्ति को हेपेटाइटिस की समस्या हो और उसे उसे विषय में जानकारी ना हो परंतु हेपेटाइटिस से हेपेटाइटिस बीकेटी के द्वारा बचा जा सकता है।
3.पोलियो
पोलियो में पोलियो का वायरस शरीर के मस्तिष्क एवं रीड के नसों पर हमला करता है। और शरीर को लकवा ग्रस्त कर देता है। पोलियो की समस्या होने पर बच्चों के शरीर का कोई एक भाग खराब हो जाता है। और बच्चा जीवन भर के लिए विकलांग कहलन लगता है।
पोलियो एक संक्रमित बीमारी होती है यह संक्रमित व्यक्ति के धूप से खून से बलगम से माल से आदि। चीजों से फैल सकता है। आपके बच्चे को पोलियो की ओरल ड्रॉप्स और पोलियो का इंजेक्शन एक साथ दिया जा सकता है।
आप इसके विषय में डॉक्टर से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं परंतु इस बात का ध्यान रखना चाहिए। कि हमें पोलियो पर टिका अवश्य लगवाना चाहिए। यदि एक बच्चा पोलियो से संक्रमित हो जाता है तो उसका हरियाणा उसे अपने जीवन भर भुगतना पड़ता है।
4.डिप्थीरिया
डिप्थीरिया एक जीवाणु जनित रोग होता है। यह जीवाणु के संक्रमण के कारण शरीर के फेफड़े को ज्यादा संक्रमित करता है और यह गले को अधिक प्रभावित करता है। डिप्थीरिया होने पर संक्रमित व्यक्ति को बहुत ज्यादा खांसी आती है। उसके फेफड़ों पर बलगम जम जाती है और उसे सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होती है।
संक्रमित व्यक्ति के गले में भी दर्द होता है और उसे हमेशा सर्दी रहती हैं। डिप्थीरिया फैलने वाली समस्या होती है यह संक्रमित व्यक्ति के खासने और छकने से फैलता है। डिप्थीरिया गंभीर मामलों में तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचता हो सकता हैं।
यहां तक की है जानलेवा भी हो सकता है इसलिए इसके विषय में अधिक सतर्कता व्रत ना आवश्यक है डिप्थीरिया के लिए आप डीटीपी का टीका लगवा सकते हैं।
5.काली खांसी
काली खांसी की शुरुआत सर्दी जुकाम से होती है। यदि संक्रमित व्यक्ति को खांसी बहुत दिनों तक रहती है तो वह खाली खांसी में परिवर्तन हो जाती है काली खांसी एक बहुत ज्यादा संक्रामक रोग होता हैं। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बहुत तेजी से फैलता हैं।
काली खांसी में बच्चों को सर्दी जुकाम होता है। और उसे बहुत ज्यादा तेज से हंसने पर आवाज आती है। बच्चे को खांसी बहुत समय तक हफ्तों तक या महीना तक रह सकती है। उसी को हम काली खांसी के रूप में देखते हैं यह संक्रामक रोग होता है। संक्रमण पर यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाता है।
बच्चों को काली खांसी से बहुत सारी समस्याएं होती हैं। जैसे की निर्जलता वजन घटा डिहाइड्रेशन यह बहुत सारी समस्या बच्चों के अंदर देखने को मिल जाती हैं। काली खांसी की वजह से कई दुर्लभ मामलों में बच्चों के मस्तिष्क को हानि पहुंचती हैं। और ज्यादा सीरियस होने पर इसके कारण बच्चों की मौत भी हो सकती हैं।
इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को काली खांसी का टीका यानी की डीपी का टीका अवश्य लगाना चाहिए अन्यथा यह एक जानलेवा बीमारी बन सकती है।
6.टेटनेस
टेटनस एक प्रकार की समस्या होती है जो लोहे के किसी कई लगे हुए भाग को यदि शरीर के द्वारा छाती पहुंचाई जाती हैं। तो हमारे शरीर में टेटनस की समस्या हो जाती हैं। यदि लोहे पर जंग लगा हुआ हैं। और इस लोहे से आपको चोट लग जाए तो आपको टिटनेस की समस्या होती है।
टिटनेस होने पर इनफेक्टेड भाग को काटने तक पड़ता है। यह बहुत एक सीवर समस्या समय के साथ होती चली जाती है इसलिए इसका टीका लगवाने बहुत आवश्यक है
जिस मांसपेशियों में टेटनेस का इन्फेक्शन फैलता हैं। उसमें एटम बचती है और दर्द होने लगता हैं। टेटनेस का बैक्टीरिया मिट्टी में पानी आदि चीजों में रहता है टिटनेस का बैक्टीरिया शरीर में घाव या चोट के द्वारा प्रवेश करता है।
यदि आप पशु को काटने टैटू बनवाने आदि जैसी शारीरिक क्रियो से भी टिटनेस का बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश कर जाता हैं। यदि सही समय पर उपचार नहीं लिया जाता तो यह जानलेवा बीमारी में भी परिवर्तित हो सकता है।
7.खसरा (मीजल्स)
पुराने समय में खसरा एक बहुत गंभीर समस्या थी खसरा के कारण बहुत अधिक मात्रा में मोटे हुआ करती थी। क्योंकि पुराने समय में मेडिकल सुविधा ठीक ना होने के कारण एक व्यक्ति से बहुत सारे व्यक्तियों में यह बीमारी फैल जाती थी। और पूरे गांव के गांव खरे के कारण संक्रमित हो जाते थे।
खसरे की शुरुआत सर्दी जुकाम से होती है और खांसने और सीखने से यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने लगती हैं। समय के साथ-साथ शरीर में तेज बुखार आने लगता हैं। और शरीर पर चकत्ते पड़ने लगते हैं।
खसरे के कारण बच्चों को निमोनिया डायरिया यहां तक के उसके दिमाग में भी सूजन आ सकती है और इसके ज्यादा बुरे परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं। एमआर का टीका बच्चों को खास र से सुरक्षा प्रदान करता है इसलिए इस टीके को बच्चों को अवश्य लगवाना चाहिए।
8.छोटी माता (चिकिन पॉक्स)
छोटी माता यानी कि चिकन पॉक्स की शुरुआत शरीर में हल्के बुखार से होती हैं। धीरे-धीरे शरीर में छोटे-छोटे खुजली वाले दाने निकलने की शुरू हो जाते हैं। यह दाने पूरे शरीर में निकलते हैं और यह काम से कम 7 दिनों तक रहते हैं।
चिकन पॉक्स की समस्या होने पर शारीरिक रूप से बहुत ज्यादा साफ सफाई की ध्यान रखने की आवश्यकता होती हैं। यह एक संक्रमित रोग होता हैं। और यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खने या चीखने से भी फैल जाता हैं।
परिवार में यदि एक व्यक्ति को चिकन पॉक्स की समस्या हो गई है तो कुछ समय के पश्चात दूसरे व्यक्ति को भी यह समस्या होने का खतरा बना रहता हैं। चिकन पॉक्स की एक खासियत है कि यदि एक बार एक व्यक्ति को यह समस्या हो गई हैं।
तो दोबारा चिकन पॉक्स की समस्या होने की संभावना बहुत कम रह जाती है क्योंकि शरीर में एक बार इस रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती हैं। और शरीर दोबारा ऐसे ग्रसित नहीं होने देता।
9.हैजा (कालरा)
हैजा जीवाणुओं के संक्रमण के कारण होता है। हैजा में शरीर के अंदर निर्जलीकरण की समस्या हो जाती है। और गंभीर दस्त लग जाते हैं। यदि व्यक्ति को हैजा का संक्रमण हुआ है तो उसका उपचार जल्दी से जल्दी करना बहुत आवश्यक होता है।
क्योंकि यह पूरे शरीर में पानी की कमी कर देता है और निर्जलीकरण की समस्या शरीर में हो जाती है।यह इन्फेक्शन उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में होता है। जहां पर अधिक शुद्ध पानी नहीं पाया जाता और अशुद्ध पानी के सेवन के कारण ही है जय हैजा जैसी समस्या हो जाती है।
हैजा का वायरस बीब्रियों क्वालिटी होता है जिसके कारण व्यक्ति को हैजा की समस्या होती है। यदि आप ऐसी जगह पर रहते हैं जहां पानी शुद्ध नहीं है या किसी यात्रा पर है तो आपको साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
10.जापानी इंसेफेलाइटिस
जापानी इंसेफेलाइटिस के एक प्रकार का विषाणु जनित रोग होता हैं। जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में मच्छर के द्वारा फैलता हैं। जापानी इंसेफेलाइटिस यानी कि जी सूअर में और अन्य प्रकार के जानवरों में पाया जाता है। मच्छर इन जानवरों को काटने के बाद इंसानों को काटते हैं।
जिसके कारण के जानवरों से इंसानों में फैला है परंतु यह इंसान से इंसान में नहीं फैलता।जापानी इंसेफेलाइटिस के लक्षण होते हैं। तेज बुखार हिले दूल्हे में परेशानी डर पढ़ना कुछ समझ में ना आना शरीर। अनियंत्रित ढंग से शरीर का हिलना और मांसपेशियों का कमजोर होना।
यदि इसका उपचार नहीं होता है तो यह जानलेवा बीमारी में भी परिवर्तित हो सकता है इसलिए इसका उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
यह इन्फेक्शन स्थानिक होता है और कुछ ही क्षेत्र में पाया जाता है। यह इंफेक्शन ज्यादा क्षेत्र में नहीं पाया जाता यदि आप ऐसे क्षेत्र में रह रहे हैं। जहां पर इस इन्फेक्शन के फैलने का जोखिम रहता है तो ऐसा नहीं करना चाहिए और इस इंफेक्शन से बचकर रहना चाहिए।
क्या शिशु को टीके से कोई दुष्प्रभाव होता है?
बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं (Bacho me teeke ke prabhav) जिनमें तक के दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। परंतु बहुत सारे बच्चों में तक के कोई भी दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता हैं। शिशु के अंदर तक के क्या-क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं उसके विषय में नीचे जानकारी प्राप्त की गई है
- हल्का बुखार
- इंजेक्शन लगाए गए स्थान पर सूजन होना
- और लाल होना मछली महसूस होना
- या भूख न लगना
- दस्त लगना डायरिया होना
- थकान या चिड़चिड़ापन होना
बच्चों को जब एमआर का टीका लगता है तो उसे कुछ हल्के दस्त प्रभाव देखने को मिलते हैं।
- अस्वस्थ महसूस करना
- शरीर पर चकत्ते होना
- बुखार रहना
- भूख न लगना
- भोजन न करना
टॉपिक से संबंधित प्रश्न एवं उनके उत्तर (FAQ)
Q. संक्रमित रोग किस प्रकार के होते हैं?
संक्रमित रोगों में बीमारी एक व्यक्ति से दूसरी व्यक्ति में फैलती है उसे संक्रमित रोग कहा जाता है।
Q. टिकों का रोगों के प्रति क्या प्रतिक्रिया प्रदर्शित करते हैं?
पीके किसी भी बीमारी का एंटीडोट होते हैं वह शरीर को बीमारी होने से बचते हैं।
Q. मलेरिया किस वायरस के कारण होता है?
मलेरिया प्लाज्मोडियम विवेक्स नामक वायरस के कारण होता है।
Q. क्या ठीक हो से कोई दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं?
शरीर में हल्के बुखार और दर्द जैसे दुष्प्रभाव शरीर के अंदर देखने को मिलते हैं।
निष्कर्ष :
इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको बचपन की बीमारियां और टीके(Bacho me diseases aur teeke) के विषय में जानकारी देने का पूरा प्रयास किया है। यदि फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न है तो आप नीचे दिए हो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।
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