नागरिकता संशोधन बिल (CAB) क्या है? नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में पूरी जानकारी

अभी तक NRC यानी National Register of citizens को लेकर बहस खत्म भी नहीं हुई थी कि अब citizenship amendment bill यानी CAB, जिसे हिंदी में नागरिकता संशोधन विधेयक भी पुकारा जाता है, ने सियासत को पूरी तरह गरमा दिया है। वोटिंग के जरिए यह बिल राज्यसभा में भी पास हो चुका है। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि NRC से कोई असल नागरिक नहीं छूटेगा। वहीं, NRC को लागू करने से पहले नागरिकता संशोधन बिल ले आया गया। पहले तत्कालीन गूह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे केवल असम में लागू किए जाने की बात कही थी, जबकि अब देश के गृह मंत्री अमित शाह अब इसे पूरे देश में लागू किए जाने की बात कह चुके हैं।

लिहाजा, अब इस बिल को लेकर पूर्वोतर में विरोध प्रदर्शन जारी है। असम में शांति बहाली की बात कही जा रही है, जबकि बंगाल में अभी भी विरोध की आग पुरजोर तरीके से जल रही है। देश में नागरिक, नागरिकता, नागरिकता विधेयक जैसे शब्दों पर जबरदस्त बहस छिडी हुई है। दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि नागरिकता क्या होती है? यह नागरिकता विधेयक है क्या? अगर नहीं जानते हैं तो भी कोई बात नहीं। हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको इस संबंध में पूरी जानकारी देंगे। आप बस ध्यान से इस पोस्ट को पूरा पढ जाएं।

Citizenship यानी नागरिकता क्या होती है –

दोस्तों, नागरिकता संशोधन बिल से पहले आइए यह जान लें कि नागरिकता क्या होती है? दरअसल, नागरिकता एक विशेष सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय या मानव संसाधन समुदाय का एक नागरिक होने की अवस्था है। सामाजिक अनुबंध सिद्धांत के तहत नागरिकता की अवस्था में अधिकार और कर्तव्य दोनों शामिल होते हैं। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि जैसे देश के किसी भी भू भाग में घूमने का देश के नागरिक को अधिकार है तो वहीं देश में शांति के हालात बनाए रखना उसका कर्तव्य है। भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 में इसका विस्तृत उल्लेख किया गया है।

नागरिकता संशोधन बिल क्या है –

दोस्तों आपको बता दें कि नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने के लिए लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक लाया गया था। इस विधेयक के जरिये अफगानिस्तान एंव पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों जैसे हिंदुओं, सिख, बौद्ध, जैन, पारसियों और ईसाईयों को बिना समुचित दस्तावेज भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा गया। इसमें भारत में उनके निवास के समय को 12 साल से घटाकर छह साल करने का प्रावधान किया गया है। यानी यह शरणार्थी अब छह साल के बाद भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।

इस बिल के तहत कुल मिलाकर अगर एक लाइन में कहें तो सरकार अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलना चाहती है। विभिन्न दलों की बात करें तो शिवसेना इस बिल का समर्थन कर रही है। लेकिन कांग्रेस और एनसीपी इसका विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि यह धर्म के आधार पर देश बांटने की साजिश हो रही है।

नागरिकता संशोधन बिल यदि कानून बना तो क्या होगा –

अब आपको बता दें कि अगर यह बिल कानून बना तो क्या होगा? नागरिकता संशोधन बिल अगर कानून बन गया तो पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के चलते आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को नागरिकता संशोधन बिल यानी सीएबी के तहत भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। लेकिन मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। यही बात है, जो फसाद की जड़ है, जिसे लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। और यही बात लाजिमी तौर पर मुसलमानों को खलने वाली है, जिसकी वजह से वह खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।

लोगों का मानना है कि इस प्रावधान की वजह से ही मुस्लिमों के भीतर इस बिल को लेकर अपने ही देश में दोयम दर्जे के नागरिक होने की भावना पैदा हो रही है, जो कि देश की सेकुलर यानी धर्म निरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचाने वाली बात है, क्योंकि संविधान ने देश को धर्म निरपेक्ष देश के रूप में परिभाषित किया है। ऐसे में इस प्रावधान से देश की छवि को धक्का पहुंचेगा। लोगों का आरोप है कि इस बिल के जरिए भाजपा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में अग्रसर है।

क्यों कर रहा है विपक्ष इसका विरोध –

नागरिकता संशोधन बिल (CAB) क्या है? नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में पूरी जानकारी

भाजपा जहां इस बिल पर पूरी ताक़त झोंक चुकी है, वहीं कांग्रेस, शिवसेना, जदयू, असम गण परिषद और तृणमूल कांग्रेस इस विधेयक के विरोध में हैं। कांग्रेस का कहना है कि यह 1985 के ऐतिहासिक असम करार के प्रावधानों का उल्लंघन है, जिसके तहत 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी अवैध विदेशी नागरिकों को वहां से निर्वासित किया जाएगा, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो। यह उन लोगों के लिए फायदेमंद होगा, जो चाहते हैं कि असम दूसरा कश्मीर बन जाए।

आपको लगे हाथ यह भी बता दें कि संयुक्त संसदीय समिति यानी joint parliamentary committe, जिसे जेपीसी पुकारा जाता है, की आखिरी रिपोर्ट में भी चार विपक्षी दलों ने इससे नाइत्तेफाकी जताई थी। ये थे कांग्रेस, तृणमूल, माकपा और सपा। उनका कहना है कि इससे असम में जातीय विभाजन सतह पर आ जाएगा। वह धार्मिक आधार पर नागरिकता का विरोध करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि इससे देश विभाजन की आग में झुलस जाएगा, क्योंकि भाजपा धर्म के आधार पर देश और लोगों को बांटने के कार्य में लगी है।

क्या है CAB bill लाने के पीछे भाजपा का तर्क –

अब आपको बता दें कि बिल लाने के पीछे भाजपा का तर्क क्या है। दरअसल, सत्ताधारी भाजपा का कहना यह है कि अगर इसे पारित नहीं किया गया तो अगले पांच साल में देश और राज्य के हिंदू अल्पसंख्यक बन जाएंगे। वह इसे हिंदू अधिकारों की रक्षा की तरह पेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि धार्मिक कारणों की वजह से दूसरे देशों से अत्याचार झेलकर आने वाले हिंदू शरणार्थियों को उनके अधिकारों से वंचित किया गया।

यहां की नागरिकता से उनके सर्व अधिकारों को सुरक्षित किया जाएगा। इस बिल के बाद दिल्ली समेत अन्य ऐसी सभी जगहों पर जश्न का माहौल है, जहां शरणार्थियों की संख्या लाखों में है, जो सालों से इन शहरों में निवास कर रहे हैं। लेकिन इससे मुस्लिमों में संदेह की स्थिति है। यही वजह है कि उनकी ओर से जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

भारत में अभी तक किस आधार पर नागरिकता –

दोस्तों, आपको अब यह जानकारी देते हैं कि भारत में किस आधार पर नागरिकता का प्रावधान किया गया है। आप जानते लीजिए कि भारत देश में एकल नागरिकता का प्रावधान है। यानी यह दोहरी नागरिकता को स्वीकार नहीं करता। इसे एक मिसाल के जरिए यूं भी समझ सकते हैं। मान लीजिए कि अगर कोई व्यक्ति कनाडा का नागरिक है और वह साथ ही भारत की नागरिकता भी लेना चाहे तो यह संभव नहीं। उसे कनाडाई नागरिकता छोडनी होगी। भारतीय नागरिकता अधिनियम के 1955 के अनुसार इन पांच में से किसी एक आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है-

  1. जन्म के आधार पर
  2. वंश के आधार पर
  3. पंजीकरण के आधार पर
  4. प्राकृतिक रूप से
  5. किसी क्षे़त्र विशेष के अधिगृहण के आधार पर।

आइए, अब इन बिंदुओं यानी आधारों के बारे में सिलसिलेवार विस्तार से जानते हैं।

1- जन्म से नागरिकता –

जन्म से प्रत्येक व्यक्ति, जिसका जन्म संविधान लागू होने यानी 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद भारत में हुआ हो, वह जन्म से भारत का नागरिक होगा। इसके अपवाद भी हैं-जैसे राजनयिकों के बच्चे, विदेशियों के बच्चे आदि।

2- वंश परंपरा से नागरिकता –

भारत के बाहर अन्य देश में 26 जनवरी, 1950 के बाद जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई भारत का नागरिक हो। आपको यह भी जानकारी दै दें कि इसमें 1992 में संशोधन किया गया और माता की नागरिकता के आधार पर विदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भी नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया।

3- देशीकरण के जरिये नागरिकता –

इसके तहत भारत सरकार से देशीयकरण का प्रमाण पत्र प्राप्त कर देश की नागरिकता हासिल की जा सकती है।

4- पंजीकण के जरिये नागरिकता –

अ- वह व्यक्ति, जो पंजीकरण प्रमाण पत्र देने की तिथि से छह महीने पहले से भारत में रह रहे हों।
ब- वे भारतीय, जो अविभाज्य भारत से बाहर किसी देश में निवास कर रहे हों।
स- वे स्त्रियां, जो भारतीयों से विवाह कर चुकी हैं या भविश्य में विवाह रचाएंगी।
द- भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।
ध- राष्ट्र मंडलीय देशों के नागरिक, जो भारत में रहते हों या भारत सरकार की नौकरी कर रहे हों, आवेदनपत्र देकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।

5- भूमि विस्तार के जरिये –

अगर किसी नए भू भाग को भारत में शामिल किया जाता है तो उस क्षेत्र में रह रहे व्यक्तियों को स्वयं की भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती।

भारतीय नागरिकता अधिनियम संशोधन अधिनियम 1986 –

दोस्तों, आपको यह भी बता दें कि भारतीय नागरिकता अधिनियम में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986 के जरिये कई संशोधन किए गए, जो इस तरह हैं –

  1. अब भारत में जन्में केवल उस व्यक्ति को ही नागरिकता मिलेगी, जिसके माता-पिता में से एक भारत का नागरिक हो।
  2. जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता हासिल करना चाहते हैं, उन्हें भारत में कम से कम पांच साल निवास करना होगा, पहले यह अवधि छह माह थी।
  3. देशीयकरण के जरिये नागरिकता तभी प्रदान की जाएगी, जबकि संबंधित व्यक्ति कम से कम 10 सालों तक भारत में रह चुका हो, पहले यह अवधि पांच साल की थी। इस नागरिकता संशोधन अधिनियम-1986 को जम्मू कश्मीर और असम समेत भारत के सभी राज्यों पर समान रूप से लागू किया गया।

नागरिकता कैसे खत्म होती है –

दोस्तों, आपको बता दें कि जिस तरह सरकार के द्वारा नागरिकता दी जाती है, उसी प्रकार कई स्थितियों में नागरिकता खत्म हो सकती है या छीनी जा सकती है। आइए जानते हैं कि यह स्थितियां कौन कौन सी हो सकती हैं-

  1. नागरिकता का परित्याग करने पर
  2. किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार करने पर
  3. सरकार के जरिये नागरिकता के छीन लिए जाने पर

दोस्तों, यह भी नागरिकता बिल से जुडी वह तमाम जानकारी,जो आप पहली नजर में जानना चाहेंगे। अगर इसके अलावा भी कोई अन्य प्रश्न आपके दिल या दिमाग में कुलबुला रहा है तो आप बेहिचक उस सवाल को हमारे साथ साझा कर सकते हैं। इसके लिए आपको बस नीचे दिए comment box के भीतर comment करना होगा। हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि आपकी जिज्ञासा को शांत किया जा सके। या आप कोई सुझाव किसी विशय के संबंध में देना चाहते हैं तो उसका भी स्वागत है। उसके लिए भी आप नीचे दिए गए comment box में comment कर सकते हैं। उसे अमल में लाने का पूरा प्रयास किया जाएगा। उम्मीद है कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। ।।धन्यवाद।।

राधा वैश्य

राधा वैश्य लखनऊ उत्तर प्रदेश से हैं। वह शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ीं हैं, और लोगों के साथ ज्ञानवर्धक जानकारी साक्षा करने में रूचि रखतीं हैं। इनके 500 से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

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