प्रेगनेंसी का समय किसी भी महिला के लिए बहुत उत्साह से भरा होता है। मां के अंदर अपने आने वाले नए बच्चों के लिए काफी खुशी होती है। पहले से ही वह नाम खिलौने आदि चीजों की तैयारी करने लगते हैं। इसके अलावा परिवार के अंदर इस बात को जानने का उत्साह होता है कि उनका बच्चा लड़का होगा या लड़की। बच्चे के जेंडर प्रिडिक्शंस के बहुत सारे मेथड (Gender prediction me nub theory) इस्तेमाल किए जाते हैं उनमें से ही एक मेथड होता है नव थ्योरी।
नर्व थ्योरी मेथड से कैसे जेंडर को प्रिडिक्ट किया जाता है और कैसे इसका (Gender prediction me nub theory ka use)इस्तेमाल होता हैं। उसके विषय में नीचे जानकारी प्रदान की गई है यदि आप भी इस विषय में जानकारी चाहते हैं तो हमारे आर्टिकल को अंत तक पढ़े।
नर्व थ्योरी जनरल प्रोडक्शन (Gender prediction me nub theory)का एक अनप्रूव्ड मेथड होता हैं। जैसा कि हमने आपको पहले भी इसके बारे में जानकारी दी हैं। इससे हमें साफ तौर पर यह पता नहीं चलता कि बच्चा बेटा होगा या बेटी। परंतु इससे हम प्रोडक्शन लगा सकते हैं कि बच्चा क्या हो सकता है इस थ्योरी में बच्चों के नव के एंगल यानी जेनेटिकली ट्यूबरकल पर निर्भर करता है। जेनेटिकली ट्यूबरकल बच्चों के लोअर एब्डोमेन में बनता है।
ट्यूबरक्ले में मेल बेबी में पेनिस और फीमेल बेबी में क्लीटोरिस के नाम पर विकसित होता है नव थ्योरी यह कहती है कि जब यह दोनों एंगल किसी खास एंगल पर होते हैं। तब यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चा बेटा होगा या बेटी। वह एंगल जिस पर मेल फीमेल प्रोडक्ट किया जाता है उसे एंगल ऑफ़ डांगले कहा जाता हैं। यदि नव 30 डिग्री पर होता है तो ऐसा माना जाता है कि लड़का होगा और यदि नव लगभग फ्लैट होता है। तो ऐसा माना जाता है की लड़की होगी नव की स्थिति को अल्ट्रासाउंड के माध्यम से देखा जा सकता है।
वैसे तो भारत में पहले से (Gender prediction me nub theory ka use)ही बच्चे का जेंडर प्रिडिक्ट करना और उसकी जानकारी प्राप्त करना गैरकानूनी माना जाता हैं। क्योंकि भारत में अधिकतर लोग बच्चे का जेंडर प्रेडिक्शन करके गर्ल चाइल्ड को करने का प्रयास करते हैं।
इसलिए इसे गैर कानूनी का तरीका माना जाता है लव थ्योरी में यह बताया गया है कि जब बच्चा मां के गर्भ के अंदर 9 सप्ताह का होता है। तभी उसका हम अंदाजा लगा सकते हैं कि बच्चा लड़का है या लड़की। वैसे तो जेनेटिक टेस्ट के माध्यम से बच्चों के सेक्स को पता लगाया जा सकता हैं।
परंतु बहुत सारी महिलाएं जेनेटिक टेस्ट के लिए तैयार नहीं होती ऐसी महिलाओं के लिए नव थ्योरी का इस्तेमाल किया जाता है। नव थ्योरी के माध्यम से आसानी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चा लड़का है या लड़की इसके लिए अल्ट्रासाउंड जरूरी होता है। जब बच्चा 20 सप्ताह का हो जाता है। तब उसके शारीरिक काम पूरी तरीके से विकसित हो जाते हैं और तब यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि बच्चा लड़का है या लड़की।
यह प्रिडिक्ट करने के लिए (Boys me nub theory)की मां गर्भवती है और उसके गर्भ में बेटा है या बेटी। नव थ्योरी का इस्तेमाल किया जाता हैं। इस थ्योरी को पूरी तरीके से प्रूफ नहीं किया जा सकता बस अंदाजा लगाकर यह बताया जाता है कि बच्चा किस सेक्स का है।
नव थ्योरी में रेड से जुड़ी हुई नाव का इस्तेमाल उसके एंगल को देखकर किया जाता हैं। यदि नव का एंगल 30 डिग्री से ज्यादा होता है तो ऐसा मान लिया जाता है कि गर्भ में लड़का हैं। परंतु यदि नाव का एंगल पूरा फ्लैट होता है और या 30 डिग्री से कुछ काम होता हैं।
तो ऐसा माना जाता है कि गर्भ में लड़की है नव का एंगल जचने के लिए अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया जाता हैं। अल्ट्रासाउंड में यह साफ-साफ दिख जाता हैं। की नाव की स्थिति क्या है जिससे हम यह पता लगा सकते हैं की गर्भ में लड़का है या लड़की।
अल्ट्रासाउंड की टाइमिंग
ज्यादा डॉक्टर के द्वारा यह (Ultrasound ki timing) बताया जाता है कि जब बच्चा 7 से 8 हफ्ते के बीच होता हैं। तब बच्चे के जेनिटल ऑर्गन्स बनने की शुरुआत होती हैं। जब बच्चा 12 से 13 हफ्ते के बीच में आता हैं। तब भी उसके जेनिटल ऑर्गन्स को पूरी तरीके से जांच नहीं जा सकता।
कि बच्चा लड़का है या लड़की जब बच्चा 15 या 16 हफ्ते के बीच में आ जाता हैं। तब उसके जनरेटर ऑर्गन्स पूरी तरीके से विकसित हो चुके होते हैं। 15 से 16 हफ्ते के बच्चे का अल्ट्रासाउंड करने पर और उसकी नाव की जांच करने पर यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे का सेक्स क्या है।
हमारे देश में नव थ्योरी का एक प्रचलन हैं। जिसके माध्यम से लोग ऐसा मानते हैं कि हम इससे बच्चे का सेक्स पता कर सकते हैं परंतु यह कोई साइंटिफिक प्रूफ नहीं हैं। जिससे हमें यह पता ही लग जाए कि बच्चे का सेक्स क्या हैं। यह बिल्कुल अनप्रूव्ड मेथड होता हैं।
जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि भारत में बच्चे का उसके जन्म से पहले लिंग जांच करवाना बिल्कुल गैर कानूनी माना जाता हैं। यदि कोई भी डॉक्टर या क्लीनिक ऐसा करते हुए पाए जाते हैं तो उन्हें सजा का भी प्रावधान हैं। इसलिए हमें ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जो गैरकानूनी हो। नव थ्योरी के अलावा और कौन-कौन से मेथड है जिसके माध्यम से बच्चों के सेक्स को पता लगाया जा सकता हैं। उसके विषय में नीचे जानकारी दी गई है।
बेबी जेंडर प्रेडिक्शन
बेबी जेंडर प्रेडिक्शन के (Gender prediction me types)भारत एवं अन्य देशों में कुछ अन्य टेस्ट भी प्रचलित हैं। जिसके माध्यम से बच्चों के सेक्स का पता लगाया जाता हैं। बेबी जेंडर प्रेडिक्शन के मेथड के विषय में आपको नीचे जानकारी प्रदान की गई है।
1.रिंग जेंडर प्रेडिक्शन टेस्ट : रिंग जेंडर प्रेडिक्शन टेस्ट के भी माध्यम से लोगों का यह माना है कि बच्चों के जेंडर को पता लगाया जा सकता हैं। रिंग जेंडर प्रेडिक्शन टेस्ट में सबसे पहले एक धागे में एक अंगूठी को डाल दिया जाता हैं। इस अंगूठी के धागे को गर्भवती महिला के पेट पर घुमाया जाता हैं।
ऐसा माना जाता है कि यदि यह रिंग सर्कुलर मोशन में घूमती है तो गर्भवती महिला के पेट में पल रहा बच्चा लड़की होती हैं। और यदि यह रिंग गर्भवती महिला के पेट पर पेंडुलम आकार में घूमती हैं। तब ऐसा माना जाता है। कि महिला के पेट में पल रहा बच्चा लड़का होता है रिंग जेंडर प्रेडिक्शन टेस्ट काफी प्रचलित मेथड हैं। और लोगों का ऐसा मानना है कि इससे हमें सही जानकारी प्राप्त होती है।
2.चाइनीस बर्थ कैलेंडर : चाइनीस बर्थ कैलेंडर के माध्यम से भी बच्चों के जेंडर का पता लगाया जा सकता हैं। चाइनीस बर्थ कैलेंडर में बच्चे कि आगे और कनवीद मंथ और टाइम के हिसाब से बच्चों के जेंडर का पता लगाने की बात की जाती हैं। यह पूरी तरीके से काल्पनिक तरीका होता है इसका कोई फिजिकल प्रूफ नहीं होता इसलिए इसे मनगढ़ंत मान जाता है।
नोट :
ऊपर बताएंगे किसी भी मेथड में कोई साइंटिफिक प्रूफ सामने नहीं आता इसलिए ऊपर बताएं। किसी भी मेथड कि हम पुष्टि नहीं करते हैं यह पूरी तरीके से मनगढ़ंत और गलत तरीके भी हो सकते हैं। भारत में पहले से बच्चे का जेंडर जानना पूरी तरीके से गैर कानूनी माना जाता है।
और यदि ऐसा करते कोई पाया जाता है तो उसके लिए सजा का प्रावधान है। इसलिए हमें लड़के या लड़की में कोई अंतर न करके दोनों को खुले दिल से अपनाना चाहिए। और प्रेम करना चाहिए लड़की को गर्भ में ही मारने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
टॉपिक से संबंधित प्रश्न एवं उनके उत्तर (FAQ)
Q. पहले से ही बच्चे का जेंडर कैसे प्रिडिक्ट किया जा सकता है?
नव थ्योरी के माध्यम से पहले से ही बच्चे का जेंडर प्रिडिक्ट किया जा सकता है।
Q. बच्चों का जेंडर प्रिडिक्ट करने के और कौन-कौन से तरीके होते हैं?
बच्चों का जेंडर प्रिडिक्ट करने के लिए चाइनीस बर्थ कैलेंडर और रिंग जेंडर प्रेडिक्शन टेस्ट तरीके होते हैं।
Q. बच्चों का जेंडर उसकी जन्म से पहले प्रोडक्ट करना क्या सही है?
बाहरी देशों में से वैलिड माना जाता हैं। परंतु हमारे देश में गर्ल चाइल्ड की डेथ के कारण इसे गैर कानूनी माना जाता है और ऐसा करने वाले पर सजा का भी प्रावधान है।
अल्ट्रासाउंड के माध्यम से हम मां के नव को देख सकते हैं। और उससे यह अंदाजा लगाया जाता हैं। की मां के घर में पलने वाला बच्चा लड़का है या लड़की।
निष्कर्ष :
इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको क्या है बेबी जेंडर प्रोडक्शन में इस्तेमाल होने वाली नव थ्योरी (Gender prediction me nub theory) के विषय में जानकारी देने का पूरा प्रयास किया है। यदि फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न है तो आप कमेंट करके कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं।
हमारे आर्टिकल के द्वारा प्रदान की हुई जानकारी बिल्कुल ठोस और सटीक है ।अगर आपको हमारा आर्टिकल पसंद आए तो आप इसे अवश्य शेयर करें । हमारा आर्टिकल पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।