|| आईपीसी की धारा 360 क्या है? कब और क्यों लगती है? | IPC Section 360 | भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में सजा का प्रावधान | वकील की जरूरत कब लगती है? | भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में जमानत का प्रावधान | Bail in IPC section 360 ||
भारत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए तथा देश को ठीक प्रकार से चलाने के लिए विभिन्न विभिन्न कानून बनाए गए हैं। भारतीय दंड संहिता भारत की वह कानून की किताब है। जिसमें किए गए हर अपराध के लिए दंड का प्रावधान है भारत में जाति धर्म लिंग किसी के भी भेद पर भेदभाव नहीं किया जाता भारत में अगर किसी ने भी अपराध किया है। तो भारतीय दंड संहिता (Indian Penal code) के अनुसार ही उसे दंड दिया जाता है पुराने जमाने के राजाओं ने अपनी प्रजा पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाकर प्रजा को परेशान किया है। इन्हीं पुरानी रूढ़िवादी बातों को ध्यान में रखते हुए हर व्यक्ति को समान अधिकार प्रदान करने के लिए नियम कानून बनाए गए हैं।
आईपीसी (IPC section 360)की धारा 360 ( IPC Section 360 ) के अंतर्गत वह कानून आता है जिसमें हम अखबार में अक्सर पढ़ते हैं कि रोज ही किसी ना किसी के अपहरण होने की खबर आती है। सबसे ज्यादा अपहरण बच्चों का किया जाता है और बच्चों को विभिन्न गंदे व्यापारियों में झोंक दिया जाता है। कुछ अपहरण की खबर बुजुर्गों की भी आती है बुजुर्गों को भी अपहरण करके घरवालों को सामान्यता पैसे की मांग की जाती है।
इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको आईपीसी की धारा 360 (ipc act 360 hindi) में क्या क्या कानून है। तथा इसमें किसके सजा का प्रावधान है इसके विषय में जानकारी प्रदान करेंगे यदि आप भी इस विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप हमारे आर्टिकल को पूरा पढ़ सकते हैं।
आईपीसी की धारा 360 क्या है? (What is IPC Section 360 )
आईपीसी की धारा 360 के अंतर्गत अपहरण की घटनाएं आते हैं। अपहरण पर होता है जिसमें किसी व्यक्ति के संरक्षक या संरक्षिका के बिना या व्यक्ति की बिना मर्जी से उसे जबरदस्ती अपने साथ उठाकर ले देश में या देश की सीमा से बाहर ले जाना अपहरण की श्रेणी में आता है। यदि बच्चे का अपहरण किया जा रहा है तो बच्चे के संरक्षक माता-पिता की बिना अनुमति के यदि बच्चे को जबरदस्ती अपने साथ ले जाया जा रहा है तो उसे अपहरण कहा जाता है।
यदि मानसिक रूप से मंद व्यक्ति को उसके संरक्षक के बिना किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा अपने साथ ले जाया जा रहा है तो यह भी अपहरण की श्रेणी में आता है। हमने आपको अपहरण को आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया है इसके अलावा कुछ उदाहरणों के माध्यम से भी हम आपको आप आराम के बारे में समझाने का प्रयास करेंगे।
Ex. एक अनिल नाम का व्यक्ति जो मानसिक रूप से मंद है वह अपने घर के बाहर घूम रहा था कुछ व्यक्तियों ने अनिल को बहला-फुसलाकर उसको अपने साथ चलने के लिए कहा। अनिल भी उन व्यक्तियों के साथ चला गया अनिल को उन व्यक्तियों ने एक दूसरे आदमी के हाथ भेज दिया अनिल दिमाग से कमजोर था इस कारण वह कैसे स्थान पर है। तथा उसको कहां जाना है इस विषय में जानकारी नहीं थी।
अनिल का एक जानकार एक बार अनिल को उस गांव में देखता है तथा पास के पुलिस स्टेशन में जाकर अनिल के विषय में जानकारी देता है कि किस प्रकार उसका अपहरण किया गया है। पुलिस अनिल को पुलिस स्टेशन में लाती है तथा अनिल से उन अपहरणकर्ताओं के विषय में जानकारी प्राप्त करती है जिन व्यक्तियों ने अनिल का अपहरण किया था उनको पुलिस गिरफ्तार करती है। न्यायालय में उनके खिलाफ कार्यवाही की जाती है तथा उन्हें उचित दंड दिया जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में सजा का प्रावधान (Punishment in IPC Section 360 )
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में जो अपराध अंकित किए गए हैं उनके लिए सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के अनुसार दी जाती है। धारा (IPC SECTION 363 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को उसके बिना मर्जी के भारत की सीमा से बाहर ले जाया गया है तो अपराधी को 7 वर्ष की सजा तथा आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
न्यायालय इस बात का निर्णय करता है कि यह आर्थिक जुर्माना कितना हो सकता है। अपहरण का अपराध माफी के योग्य नहीं होता तथा किसी भी न्यायालय या मजिस्ट्रेट के द्वारा इसे जल्दी ही संज्ञान में लिया जाता है और इसपर उचित कार्यवाही करने का प्रबंध किया जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में जमानत का प्रावधान (Bail in IPC section 360)
भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (Indian Penal Code Section 307) के अंतर्गत दिए जाने वाले दंड में किसी व्यक्ति को उसकी मर्जी के खिलाफ देश से बाहर ले जाने के लिए भारत में न्यायपालिका द्वारा 7 वर्ष की सजा तथा आर्थिक जुर्माना दंड के रूप में दिया जाता है। अपहरण के अपराधों में जमानत मिल पाना मुश्किल होता है क्योंकि यह बहुत घिनौने अपराध होते हैं तथा न्यायालय भी इनके प्रति संज्ञान लेता है।
यह अपराध समझौते योग्य नहीं होते क्योंकि किसी भी व्यक्ति को उसके परिवार से अलग करने का अधिकार किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं है तथा उसकी मर्जी के बिना उसे देश से बाहर ले जाना एक घिनौना अपराध है। जिसमें वह कभी भी अपने परिवार से नहीं मिल पाता ऐसे अपराधियों का बच पाना बहुत अधिक मुश्किल होता है। भारतीय दंड संहिता में भी इसके लिए कठोर प्रावधान है इसलिए जमानत मिल पाना बहुत मुश्किल है।
वकील की जरूरत कब लगती है? (Why is lawyer important)
भारत में किसी भी अपहरणकर्ता को 7 साल की सजा तथा आर्थिक दंड दिया जाता है अपहरण करना एक गैर जमानती अपराध है। न्यायपालिका में मजिस्ट्रेट भी इनके लिए नरमी से कार्य नहीं करता क्योंकि यह एक घिनौना अपराध है। ऐसे बड़े अपराधों में वकील की आवश्यकता बहुत होती है वकील वह व्यक्ति होता है जिसे कानून के विषय में पूर्ण जानकारी होती है तथा अपने केस को मजिस्ट्रेट के सामने किस प्रकार से रखना है। एवं किन-किन दाव परसों के द्वारा उसे जीता जा सकता है इसकी विधि वकील को बहुत अच्छे से पता होती है।
वकील अपने क्षेत्र का निपुण व्यक्ति होता है अपराधी को एक ऐसा वकील करना चाहिए जिसने अपनी काबिलियत को पहले भी सिद्ध किया हो जिसने पहले भी इस तरीके के अन्य केस को जीता हो तथा कानून के क्षेत्र मैं उसे पूर्ण जानकारी हो ऐसा समझदार वकील ही अपराधी को जमानत दिलवा सकता है। इस कारण ऐसे केसेस में वकील की आवश्यकता बहुत अधिक होती है।
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भारतीय दण्ड संहिता की धारा 360 क्या है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 307 किसी व्यक्ति को उसकी मर्जी के खिलाफ देश से बाहर ले जाने के संरक्षक से दूर ले जाने के विषय में प्रावधान किए गए हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में सजा का क्या प्रावधान है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में 363 के अनुसार सजा के प्रावधान किए गए हैं। अपहरण के लिए अपराधी को 7 वर्ष की सजा तथा आर्थिक दंड का प्रावधान है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में जमानत कैसे मंजूर की जाती हैं?
धारा 360 में जमानत का प्रावधान बहुत ही मुश्किल है। किसी काबिल वकील द्वारा ही अपहरण के लिए जमानत मिल सकती है। क्योंकि यह एक गैर कानूनी अपराध है तथा न्यायालय मैं मजिस्ट्रेट भी इसके लिए बहुत संज्ञान लेते हैं और इसे एक घर अपराध माना जाता है इसलिए जमानत पाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में जमानत का क्या प्रावधान है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 में भारत से अपहरण करके सीमा से बाहर ले जाने के लिए 7 साल की सजा दी गई है। इसमें जमानत दे पाना बहुत मुश्किल है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 360 संज्ञेय अपराध है या गैर – संज्ञेय अपराध?
भारतीय दंड संहिता की धारा 307 एक संज्ञेयअपराध है।
निष्कर्ष
आईपीसी की धारा 360 के विषय में इस आर्टिकल के बारे में हमने आपको जानकारी प्राप्त की है इस आर्टिकल के माध्यम से हमें यह बताया है कि इसमें किस प्रकार के कानून है तथा अपराध के लिए क्या-क्या सजाएं हैं। यदि आपको भी इन कानूनों के विषय में जानकारी चाहिए तो आप हमारे आर्टिकल को पूरा पढ़ सकते हैं।
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