नवजात शिशु (0-1 महीना) की गतिविधियां, विकास और देखभाल | Navjat Shishu Ka Vikas

घर में जब भी किसी नवजात का जन्म होता है। तो पूरा परिवार उसके देखभाल करने में लग जाता है घर में नवजात शिशु का जन्म एक खुशी का विषय होता है क्योंकि घर में एक नए सदस्य का आगमन होता है। परिवार का हर सदस्य बच्चे की हर एक गतिविधि को देखता रहता है एवं उसे प्रोत्साहित करता है जब बच्चा जन्म के बाद से ही बिना किसी की बात को समझे मुस्कुराना शुरू करता है।

तो परिवार के हर सदस्य बच्चे को मुस्कुराने का प्रयास करते हैं क्योंकि इससे पूरे परिवार में खुशी का माहौल जागृत होता है माता पिता के लिए नए शिशु की देखभाल करना थोड़ा कठिन हो सकता है। तथा शिशु के लिए भी एक अलग माहौल से एक बिल्कुल नए माहौल में आने पर थोड़ा समझने में दिक्कत हो सकती है परंतु कुछ समय के पश्चात शिशु इस नए माहौल को ग्रहण कर लेता है और इसमें बढ़ने लगता है।

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नवजात शिशु (0-1 महीना) की गतिविधियां, विकास और देखभाल | Navjat Shishu Ka Vikas

इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको नवजात शिशु की 1 महीने तक की गतिविधियां एवं बच्चे के शारीरिक विकास के विषय में बात करेंगे। यदि आपके परिवार में भी कोई छोटा बच्चा है जिसकी देखभाल आप कर रहे हैं तो इस आर्टिकल के माध्यम से आप बच्चे के विषय में पूर्ण जानकारी ले सकते हैं।

नवजात शिशु (0-1 महीना) की गतिविधियां, विकास और देखभाल Navjat Shishu Ka Vikas

1 महीने के बच्चे का वजन और हाइट कितनी होनी चाहिए? (How much height and weight is gained by one month child)

मां के घर में बच्चे को मां के द्वार प्रदान किया गया पोषण ही मिलता है। परंतु उसके जन्म के पश्चात जब वह एक नए माहौल में आता है तो उसका मुख्य कार्य दूध पीना रोना अपनी नैपी को गंदा करना और सब को परेशान करना होता है। शिशु के जन्म के बाद जैसे जैसे वह बड़ा होता है वैसे वैसे उसका शरीर विकास करता है तथा उसका वजन भी बढ़ता है हम आपको यह बताएंगे कि 1 महीने के बच्चे का वजन और इसकी लंबाई किस प्रकार बढ़ती है।

World Health Organization के अनुसार पहले महीने में बेबी गर्ल का सामान्य वजन 3.5 – 4.9 किलो के बीच और हाइट 53.8 से.मी. होती है। वहीं, बेबी बॉय का सामान्य वजन 3.7 -5.3 किलो के बीच और हाइट 54.8 से.मी. हो सकती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन एक विश्वसनीय संस्था है। तथा यह पूरे विश्व में स्वास्थ्य के विषय में जानकारी प्रदान करता है।

ज्यादातर बालकों का वजन ऊपर दिए हुए मानक के अनुसार ही होता है। परंतु कुछ बच्चों का वजन तथा उनकी लंबाई मानक से कुछ अलग भी हो सकती है इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चे का विकास किस प्रकार से नहीं होता हर बच्चे के जींन अलग-अलग होते हैं तथा इनके हिसाब से उनका विकास होता है। बच्चे के विकास में बेहतर जानकारी बाल चिकित्सक दे सकते हैं क्योंकि बाल चिकित्सकों ने बच्चों के विकास पर पूरी शिक्षा ग्रहण किया था।

बच्चे का वजन उसके खान-पान तथा उसके स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। यदि बच्चे का स्वास्थ्य ठीक रहता है तो बच्चे को वजन बढ़ाना यदि समय समय पर खराब रहता है तो बच्चे का वजन कम भी हो सकता है। बच्चे का वजन इस बात पर भी निर्भर करता है कि जन्म के समय बच्चे का वजन कितना था इसलिए माता-पिता को यह ध्यान रखना चाहिए तथा हमेशा यह नहीं सोचना चाहिए कि उतनी उम्र पर बच्चे का वजन कितना ही रहेगा। बच्चे के वजन के विकास में हर एक मानक संबंध रखते हैं इसलिए माता-पिता को व्यर्थ की चिंता नहीं करना चाहिए।

1 महीने के शिशु का विकास (Development of one month child)

जब शिशु का जन्म होता है तो उसके लिए एक नया माहौल होता है। शिशु कुछ समय के पश्चात जब अपनी आंखें खोलता है तो उसे एक नई रोशनी का आभास होता है। उसके शरीर में विभिन्न विभिन्न प्रकार के बदलाव समय के साथ होते रहते हैं और वह उन बदलावों को ग्रहण करके नए विकास की ओर बढ़ते हैं हम आपको 1 महीने के शिशु के विकास के विषय में बताइएगे।

मस्तिष्क का विकास (Development of Brain)

1.भूख की समझ :

जब शिशु का जन्म होता है तो उसे किस समय दूध पीना है इस बात की समझ नहीं आती मां अपने अंदाज से बच्चे को दूध पिला देती है तथा उसे कितना दूध पीना है। यह भी उसे कभी-कभी ज्यादा दूध पीने के कारण मैं दूध को वापस उधर देता है एक महीने का होने के बाद बच्चे को धीरे-धीरे इस बात की समझ होने लगती है कि उसे भूख लग रही है तथा अपने भूख को व्यक्त करने के लिए रोने लगता है।

 मां को यह समझा जाता है कि बच्चे को भूख लग रही है। बच्चे 1 महीने के होने के बाद अपने दूध का समय भी निश्चित कर लेते हैं। वह उस निश्चित समय पर ही रोते हैं बच्चों के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह ध्यान रखना पड़ता है कि बच्चे एक ही समय पर दूध पीने के लिए रोते हैं।

2.स्वाद की पहचान :

जब बच्चे का जन्म होता है तो उसे किसी भी तरह के स्वाद की पहचान नहीं होती वह सिर्फ मां का दूध पीता है और उसे यह भी नहीं पता होता कि उसका स्वाद क्या है। उसे सिर्फ पेट भरना होता है और अपनी भूख मिटाने होती है परंतु 1 महीने का होने के बाद उसे स्वाद तथा गंद की पहचान होने लगती है धीरे-धीरे उसे मां के दूध की गंध आने लगती है.

अगर मां शुरुआत के 1 महीने में बच्चे को बाहर का दूध भी पिला रही हैं और वह मीठा मिलाकर दूध पिला रही हैं तो बच्चे को 1 महीने के बाद यह समझ आ जाता है। कि दूध मीठा है या फिर का और अगर मैं लगातार बच्चे को मीठा दूध पिला रही है तो बच्चा ही का दूध पीने से खतरा था क्योंकि मीठे दूध के बच्चे को आदत लग जाती है।

3.चेहरे या वस्तु की पहचान :

जब बच्चा 1 महीने का हो जाता है तो बच्चे को कुछ खास चेहरों की पहचान हो जाती है जैसे बच्चे के दिमाग में मां का चेहरा शुरुआत से ही बस जाता है। सबसे ज्यादा लगा बच्चे को मां से होता है मां के बाद बच्चे के करीब जो सबसे अधिक रहता है बच्चा उसकी भी पहचान करने लगता है बच्चे के सामने जो चीज अधिक देर तक रहती है और बच्चा जिस चीज को बहुत ध्यान से देखता है उसे अपने मन में बसा लेता है। किसी को भी पहचानने की क्षमता बच्चे के दिमाग में 6 से 10 महीने में विकसित होती है इससे पहले किसी को पहचानना बच्चे के लिए मुश्किल होता है इसलिए यदि किसी का बच्चा एक माह का है और वह किसी को नहीं पहचान ना तो माता-पिता को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए।

4.चीजों व गंध का अहसास :

बच्चा 1 महीने का होने के बाद कोमल तथा खुरदरी चीजों में अंतर महसूस करने लगता है उसे मां के दूध की गंध समझ में आने लगती है। उसे अच्छी तथा बुरे स्वाद के बीच में अंतर बताया जाता है यदि बच्चे को दवाई खिलाई जाती है तो वह मिलती दवाई को स्वाद के साथ खा लेता है परंतु कड़वी दवाई के लिए मुंह बिगड़ता है। इस बात से यह पहचान की जा सकती है कि बच्चे को मेथी तथा कड़वे स्वार्थ के बीच में अंतर समझ आ गया है।

शारीरिक विकास (Body development)

1.बांह को झटकना :

1 महीने का होने के बाद बच्चा धीरे-धीरे अपने हाथ पैरों को हिलाने लगता है बच्चों के हाथ पैरों को भटकने से इस बात का आभास नहीं रखता है कि बच्चे की मांसपेशियों का विकास ठीक ढंग से हो रहा है बच्चा सही तरीके से अपने हाथों पैरों को हीला रहा है।

2.अंगों में हरकत :

बच्चे के शरीर के सभी अंगों में हरकत होने लगती है बच्चा अपने हाथ पैर तथा आंखों को सही प्रकार से चलाने लगता है और अपने शरीर का विकास ठीक ढंग से करने लगता है।

3.स्पर्श :

बच्चा अपने हाथों से अपनी नाक को खुजलाने लगता है अपने मुंह को स्पर्श करने लगता है तथा अपने पैरों को छूने लगता है इससे बच्चे की मांसपेशियां और अच्छे से विकसित होती हैं क्योंकि इस शरीर में खिंचाव उत्पन्न होता है।

4.सिर का पीछे जाना :

बच्चे के जन्म के 1 महीने के पश्चात तब भी बच्चे अपने सर को संभाल पाने में सक्षम नहीं हो पाते जब बच्चे को गोद में लिया जाता है तो उसका सिर्फ पीछे की तरफ झुक जाता है इस बात से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि बच्चा 1 महीने का होने के बाद भी अपने सिर को संभाल नहीं पाता सिर को संभालने के लिए बच्चे को कम से कम 5 महीने का होना चाहिए क्योंकि गर्दन की मांसपेशियां इसके लिए मजबूत होती हैं जो कुछ समय लेता है तभी बच्चा अपनी गर्दन को संभाल पाता है बच्चे को गोद में लेते समय उसके सर को सहारा देकर गोद में उठाना चाहिए।

5.मुट्ठी में पकड़ना :

बच्चे के जन्म के समय ही बच्चे की मुट्ठी बिल्कुल बंद होती है उसकी मुट्ठी को खोलना ना बहुत ही मुश्किल होता है 1 महीने का होने के बाद यदि बच्चे के हाथ में कुछ पकड़ आया जाता है तो वह उसको अपनी मुट्ठी में इस प्रकार दबोच लेता है कि उसे छोड़ा पाना मुश्किल हो जाता है 1 महीने का होने के बाद बच्चा अधिकतर अपने मुट्ठी को बंद ही रखता है।

6.वस्तु पर नजर :

किसी आवाज करने वाली या चमकदार चीज जिससे बच्चा आकर्षित हो जाता है उसे लगातार देखने का प्रयास करता है बच्चा जिस चीज से आकर्षित होता है उसे कितनी भी दूर ले जाएगा जब तक वह चीज उसे दिखती रहती है तब तक उस चीज को देखता रहता है आकर्षित होने वाली चीजें रंग बिरंगे खिलौने आवाज करने वाले खिलौने हो सकते हैं।

7.नींद में कमी :

बच्चे के जन्म के समय बच्चा दिन में 6 से 7 घंटे तथा रात में 8 घंटे सोता है। बच्चा पहले महीने में 24 घंटों में कम से कम 16 घंटे सो सकता है एक बार में बच्चा 2 घंटे से अधिक नहीं होता 1 महीने का होने के बाद बच्चे की है नींद आधे घंटे कम हो जाता है।

8. गतिविधियां:

शिशु जन्म के बाद जैसे-जैसे बड़ा होता रहता है वह उम्र के साथ विभिन्न प्रकार की गतिविधियां करने लगता है शारीरिक क्रियाओं द्वारा बच्चे के स्वस्थ होने ना होने की पहचान होती है डॉक्टर इन गतिविधियों की ठीक प्रकार से जांच करता है यदि गतिविधियां सामान्य है तो बच्चा स्वस्थ है यदि बच्चा किसी भी प्रकार की शारीरिक क्रिया नहीं कर रहा है तो यह चिंता का विषय हो सकता है।

सामाजिक व भावनात्मक विकास (Social and emotional development)

रोकर बात समझाना : बच्चे का जन्म होने के बाद भी बच्चा अपने बाप को समझाने का प्रयास रोकर करता है। जब बच्चा जन्म लेता है तो दर्द के कारण वह रोता है जब बच्चा 1 महीने का वह जाता है तब उसे यह समझ में आने लगता है फिर से भूख लगी है और उसे रोने पर दूध मिल सकता है। इसलिए वह रो कर अपनी मां को यह बताने का प्रयास करता है कि उसे दूध पीना है हमने अपने परिवारों में भी देखा है कि अगर बच्चे के शरीर में किसी भी प्रकार की समस्या है तो वह बहुत रोता है। इस बात से यह स्पष्ट पता चल जाता है कि बच्चे के शरीर में कोई दिक्कत है और उसे डॉक्टर के पास दिखाना आवश्यक है।

आवाजों को पहचानना : 1 महीने का शिशु अपने परिवार के लोगों की आवाज पहचाने लगता है। खासकर मैं अपने मां से सबसे ज्यादा गुला मिला होता है उसे अपनी मां की आवाज बिल्कुल स्पष्ट पता होती है। जिस तरफ से भी बच्चा अपनी मां की आवाज को सुनता है। उस तरह अपनी गर्दन को घुमाने का प्रयास करते हैं।

नजरें मिलाना : 1 महीने का होने के पश्चात शिशु किसी भी चीज को ध्यान से देखने लगता है। वह किसी भी आकर्षित चीज को बहुत दूर तक देखता रहता है। यदि कोई व्यक्ति उसके सामने खड़ा है तथा बहुत देर तक है उसे देख रहा है तो शिशु भी पहले उसके शरीर को तथा इसके बाद उसकी आंखों को लगातार देखता रहता है।

हाथों का स्पर्श : 1 महीने का होने के बाद बच्चे को कठोर तथा मुलायम हाथों का स्पर्श समझ में आने लगता है। यदि बच्चे को प्यार से से लाया जाता है तो बच्चे को प्रेम का एहसास होता है वही बच्चे को अगर तेज हाथ से मारा जाता है तो बच्चे को यह एहसास हो जाता है। कि उसे चोट पहुंचाई गई है वह रोने लगता है बच्चा अपनी पीड़ा या अपनी बात रोकर व्यक्त करता है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चे को स्पर्श तथा कठोर हाथ के बीच में अंतर समझ में आने लगा है।

1 महीने के बच्चे का टीकाकरण (vaccination of one month baby)

भारत में बच्चों के टीकाकरण के लिए अन्य भवन में प्रोग्राम चलाए गए हैं जिससे बच्चों को स्वस्थ रखा जा सकता है। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर टीके की दवाइयां फ्री में उपलब्ध रहती हैं और पीछे की जानकारी बच्चे के घर तक आशा कर्मियों द्वारा पहुंचाई जाती है। जिससे बच्चों में होने वाली दिक्कत से बच्चा दूर रह सके सरकारी केंद्रों के अलावा प्राइवेट केंद्रों पर भी टीकाकरण उपलब्ध होता है। जन्म से लेकर 6 हफ्तों तक विभिन्न निधि के बच्चे को लगाए जाते हैं प्राइवेट केंद्रों पर टीकाकरण करवाने से अच्छे खासे पैसों का भुगतान किया जाता है बच्चों को लगाए जाने वाले टीको की लिस्ट निम्न है।

  • बीसीजी
  • हेपेटाइटिस बी 1
  • ओपीवी (जीरो डोज)
  • डीटी डब्ल्यू पी 1
  • आईपीवी 1
  • हेप-बी 2
  • हिब 1
  • रोटावायरस 1
  • पीसीवी 1

1 महीने के शिशु के लिए कितना दूध आवश्यक है?(Amount of milk required for child)

जन्म के तुरंत बाद बच्चा एक नए परिवेश में आता है। बच्चे का म्यूजिक सिस्टम तथा पाचन तंत्र दोनों कमजोर होते हैं शुरुआत में जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है तो वह थोड़े-थोड़े दूध को ही पचा पाता है उसे इस बात का अंदाजा नहीं होता कि उसे कितना दूध पीना है। अधिक दूध पीने पर बच्चों से उलट भी देता है मां के दूध और अन्य प्रकार के दूध जैसे फार्मूला दूध में अंतर होता है। इस अंतर के अनुसार ही हम आपको बताएंगे कि बच्चे को किस प्रकार का दूध पिलाना चाहिए।

मां का दूध : बच्चे के जन्म के समय बच्चे के पेट का आकार छोटा होता है। और उसका पाचन तंत्र भी कमजोर होता है इस कारण बच्चा थोड़े दूध को ही पी पाता है। जन्म के 1 सप्ताह तक बच्चा 30 से 60 एमएल दूध ही पी पाता है बच्चे की एक महीना होने तक बच्चे के पेट का आकार भी बढ़ जाता है और उसके मुंह में भी वृद्धि हो जाती है इसके बाद बच्चा अधिक मात्रा में दूध पीने लगता है। 1 महीने का होने के बाद बच्चा 4 से 6 घंटे में 90 120ml तक दूध पी सकता है इस प्रकार बच्चा दिन भर में कम से कम 900ml दूध पी पाता है और उसे ठीक प्रकार से पचा भी सकता है।

फॉर्मूला दूध : बच्चे को हमेशा मां का दूध ही पिलाना चाहिए मां के दूध में एंटीबॉडी प्रजेंट होती है। जो बच्चे के शरीर को रोगों से लड़ने की ताकत प्रदान करती हैं बच्चा स्वस्थ बनता है परंतु अगर परिस्थितियां खराब है और बच्चे को मां का दूध नहीं मिल पा रहा है। तो फार्मूला दूध पिलाना शुरू कर सकता है। बच्चे को तीन हफ्ते का हो जाने के बाद फॉर्मूला दूध पिला सकते हैं बच्चे को एक बार में 110ml फार्मूला दूध ही बनाया जा सकता है। 110 mlको 4 घंटे के अंतराल पर ही देना चाहिए।

1 महीने के बच्चे के लिए कितनी नींद आवश्यक है? (Sleep for one year child)

बच्चे के सोने का समय कोई निर्धारित समय नहीं है बच्चा कितनी भी देर तक सो सकता है। स्टडी की गई एक डांटा के अनुसार -1 महीने का बच्चा दिन और रात के बीच में अंतर स्पष्ट नहीं कर पाता 1 महीने के बच्चे को यह नहीं पता होता कि उसे कब सोना है और कब जागना है 24 घंटे में बच्चा कम से कम 16 घंटे सो सकता है 1 महीने का होने के बाद उसकी नींद आधे घंटे कम हो जाती है। बच्चा 1 दिन में रात में 8 घंटे तथा दिन मेंमें 6 से 7 घंटे तक सो सकता है। बच्चा रात में बार-बार जागता भी है और अपने माता-पिता की नींद भी खराब करता है एक बार सोने के बाद बच्चा कम से कम 2 घंटे तक सो सकता है और दिन में वह कई बार होता है।

1 माह के शिशु के खेल व गतिविधियां | Ek Mahine Ka Bachche ki khel gatividhi

1 माह का बच्चा ना बोल सकता है, ना घुटनों के बल चल सकता हैx ना पैरों के बल चल सकता है ,वह लेटे-लेटे ही विभिन्न प्रकार की प्प्रतिक्रियाओं के प्रति अपने चेहरे के हाव भाव स्पष्ट करता रहता है। उसे विभिन्न आवाजों की पहचान हो जाती है जैसे अपनी मां की आवाज को भी स्पष्ट रूप से पहचाने लगता है। और उसके आवाज लगाने पर उसकी तरफ सिर घुमाने का प्रयास करता है। किसी आवाज करने वाली वस्तु को अपने हाथ चलाकर पकड़ने का प्रयास करता है किसी आकर्षित वस्तु को इतनी दूर तक देखता है जब तक उसे वह देखती रहती है। बच्चे को पेट के बल लेट आया जाता है तो बच्चे की मांसपेशियों का विकास अच्छे प्रकार से हो जाता है बच्चा हाथ पैर चलाकर अपनी उत्सुकता को दिखाने का प्रयास करता है।

1 माह के शिशु को लेकर माता-पिता की स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं

1 माह के शिशु के लिए स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार की विशेषताएं होती हैं। अगर हमारे घर में कोई छोटा बच्चा है तो उस समय समय पर उसे विभिन्न प्रकार के खांसी जुकाम या पेट खराब होना जैसी दिक्कतें होती रहती हैं। अपनी दिक्कतों को रोककर व्यक्त करता है शिशु के स्वास्थ्य से संबंधित कुछ दिक्कत निम्न है।

कब्ज : बच्चे दिन में कई बार मल करता है। यदि मल करते समय बच्चे को 10 से 15 मिनट का समय लगे बच्चे का चेहरा लाल हो जाए यह बच्चे को 3 दिन तक मलना आने की दिक्कत हो तो माता-पिता को यह समझ लेना चाहिए कि बच्चे को कब्ज की समस्या है एवं डॉक्टर से तुरंत इसके विषय में परामर्श लेना चाहिए।

सर्दी : यदि शिशु को खांसी हो रखी है। तो माता-पिता को उसके खास ने से यह तुरंत पता चल जाता है कि बच्चे को सर्दी है सर्दी से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। इसलिए तुरंत बच्चे को डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

क्रैडल कैप : शिशु के सिर के ऊपर एक काले रंग की परत जम जाती है इस परस को क्रैडल कैप कहां जाता है। क्रैडल कैप की दिक्कत सिरको धलने से ठीक हो जाता है। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

डायरिया: सामान्यता बच्चों में सबसे ज्यादा होने वाली दिक्कत डायरिया है। माता-पिता बच्चे को समय-समय पर दूध तो पिलाते रहते हैं परंतु उसे पानी पिलाने का ध्यान माता-पिता को नहीं रहता इस कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है। और बच्चे को का पानी की कमी के कारण डायरिया जैसी दिक्कतें बन जाती है डायरिया होने पर बच्चा हल्का ठोस या हल्का पतला मल त्याग करता है अब यह समझ जाना चाहिए कि बच्चे को डायरिया है। डायरिया नॉर्मल रिफ्लेक्स एक्शन के द्वारा होता है इसलिए यह एक सामान्य प्रक्रिया है।

उल्टी: यदि बच्चा कुछ भी खाने के बाद 2 घंटे के अंदर उल्टी करता है तो यह चिंता का विषय है। बच्चे के पेट में सामान्यता कुछ ना कुछ दिक्कत होती रहती है। जिसके कारण उसके पाचन तंत्र में कमी हो जाती है और वह उल्टियां करने लगता है उल्टी करने पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है इसलिए तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए ।

मुहासे: सामान्यता शिशु के जन्म के कुछ समय पश्चात शिशु के चेहरे पर मुंहासे देखने को मिल जाते हैं। चेहरे पर मुंहासे प्लेसेंटा में तैलीय ग्रंथियों के सक्रिय होने के कारण हार्मोन में असंतुलन से मुंहासे निकलते हैं क्योंकि बच्चा एक बिल्कुल ही अलग परिवेश से एक नए परिवेश में आता है। इसलिए उसको संतुलन बैठा पानी में कुछ समस्या हो सकती है यदि माता-पिता बच्चे का ध्यान बहुत अच्छे से रखते हैं तो मुहासे की दिक्कतों से बचा जा सकता है।

गैस: गैस की समस्या एक ऐसी समस्या है जो पेट में दर्द करती है बच्चा बोल नहीं पाता इसलिए इस समस्या को नहीं बता सकता बच्चा रो कर अपनी परेशानी को व्यक्त करता है। यदि बच्चा गैस को डिस्चार्ज करते समय भी रो रहा है तो यह चिंता का विषय हो सकता है। डॉक्टर से तुरंत परामर्श करके इसका इलाज करवाना चाहिए क्योंकि गैस की दिक्कत बच्चे के लिए अधिक दुखदाई हो सकते हैं।

एलर्जी : मां का दूध पीने से बच्चा पूरी तरह से मां से जुड़ा हुआ रहता है अगर मां को सर्दी होती है। तो बच्चे को भी सर्दी लग जाती है इस प्रकार बच्चे को अगर किसी चीज से एलर्जी है और मां उस चीज को खाती है तो बच्चे के अंदर भी और एलर्जी के लक्षण दिखाई देते हैं। इसलिए इस बात का ख्याल ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को क्या खाना सूट कर रहा है और क्या नहीं मां को वही चीज खानी चाहिए।

कोलिक : कोलिक की समस्या मेरी शिशु के पेट में गैस बनती है और उसे असहज महसूस होता है। वह रोककर कोलीक की समस्या को व्यक्त कर सकता है।

बच्चे की सुनने की क्षमता, दृष्टि और अन्य इंद्रियां (senses activity of child)

1. क्या मेरा बच्चा देख सकता है?

1 महीने का बच्चा सब चीज को स्पष्ट देखता है वह अपनी मां का चेहरा भी पहचाने लगता है जब भी उसकी मां का चेहरा उसके सामने आता है। तो मैं उसे तुरंत पहचान लेता है या किसी आकर्षित वस्तु को वह दूर तक देखता रहता है यदि बच्चे की आंखों पर अचानक फ्लैश मारी जाती है। तो वह अपने आप को बंद कर लेता है इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि 1 महीने का बच्चा देख सकता है।

2.क्या मेरा बच्चा सुन सकता है?

1 महीने के बच्चे के कान पूरी तरीके से विकसित हो जाते हैं मैं अपनी मां की आवाज को समझता है। यदि किसी तेज आवाज वाली चीज को उसके कान के आसपास बजाया जाता है तो वह अपनी गर्दन को हिला कर उस चीज की ओर देखने का प्रयास करता है। परंतु मैं यह भेद नहीं कर पाता यह आवाज किसकी है।

3.क्या मेरा बच्चा स्वाद और गंध को पहचान सकता है?

जब बच्चे का जन्म होता है तो वह किसी भी प्रकार की गंदी स्वाद को नहीं समझता लेकिन एक महीने का होने के बाद उसे अपने मां के दूध की गंध समझ में आने लगती है। जब भी उसे अपने मां के पास होने का एहसास होता है तो उसे यह गंद समझ में आ जाती हैं। यदि मां के दूध के अलावा किसी और दूध का सेवन भी आप उसे करा रहे हैं और आप उसमें मीठा मिलाते हैं। तो बच्चे को उस मीठे दूध की आदत हो जाती है और जब उसे आप ही का दूध पिलाने का प्रयास करते हैं तो वह भी का दूध पीने से कतराते है इससे यह पहचान किया जा सकता है कि बच्चे को स्वाद की भी पहचान होती है।

शिशु की स्वच्छता

जिनके भी घरों में से शुरू है। उनको यह पता होता है कि बच्चे की स्वच्छता का ध्यान रखने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि वह समय-समय पर मल का त्याग करते रहते हैं और अपने शरीर को गंदा करते रहते हैं। इसलिए उनकी स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत अधिक आवश्यक है। बच्चे को स्वच्छ रखने के लिए निम्न तरीके को अपनाया जा सकता है।

डायपर : पहले तो इस बात का मुख्य का ध्यान रखना चाहिए कि गर्मियों के मौसम में बच्चे को अधिक डायपर नहीं पहनाना चाहिए। अधिक डायपर पहनाने से बच्चे की त्वचा को हवा नहीं लग पाती और बच्चे की त्वचा पर मैसेज पढ़ सकते हैं। जिससे त्वचा पर जलन महसूस होती है और लाल धब्बे पड़ जाते हैं यह बच्चे के लिए बहुत ही कष्टकारी हो सकता है। यदि आप बच्चे को डायपर पहनाते हैं। तो बच्चे के डायपर को चेक करते रहे कि वह गीला तो नहीं हो क्या यदि बच्चे का डाइपर गीला है तो उसे तुरंत बदले और बदलते समय सतर्कता बरतें बच्चे को दूसरा डायपर पहनाने से पहले चिकनी क्रीम का इस्तेमाल करें और बच्चे को कुछ समय के लिए सूती लंगोट पहना कर रखें।

स्नान: बच्चे को हमेशा हल्के गुनगुने पानी से ही नहलाना चाहिए यदि ठंड हो तो बच्चे को एक दिन छोड़कर भी नया लाया जा सकता है। बच्चे को नहलाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए तथा बच्चे को नहलाने के लिए जिस सावन का इस्तेमाल कर रहे हैं वह एंटीबैक्टीरियल होना चाहिए। जिससे बच्चे के शरीर पर जितने भी बैक्टीरिया वायरस हैं वह खत्म हो जाए बच्चे के आंख कान और नाक को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। बच्चे को खुली जगह में न नहला कर किसी बंद जगह में नहलाएं और बाथ टब का इस्तेमाल ना करें क्योंकि बाथ टब से बच्चे को खतरा हो सकता है।

सफाई : छोटे बच्चों के नाखून अक्सर बड़े हो जाते हैं तथा जब भी वह अपने हाथ पैरों को अपने मुंह आदि पर मारते हैं। तो वह नाखून उनके चेहरे को घायल कर देते हैं तथा नाखूनों में गंदगी भी जमा हो जाती है इसलिए माता-पिता को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे की नाखूनों को समय-समय काटते रहना चाहिए। बच्चे अधिक दूध पीने से अक्सर दूध को बाहर निकाल देते हैं इसलिए बच्चे को उस अंदाज से ही दूध पिलाना चाहिए जितनी उन्हें जरूरत है।

माता-पिता शिशु के विकास पर कैसे रखें नजर?

शिशु की देखभाल करना एक बहुत जरूरी विषय है तथा कुछ लोगों का यह नहीं पता होता कि शिशु की देखभाल किस प्रकार की जा सकती।

  • बच्चे को समय-समय पर डॉक्टर को दिखाना चाहिए डॉक्टर उसकी गतिविधियों को देखते हुए यह बता सकता है कि बच्चा स्वस्थ है या नहीं।
  • यदि बच्चे के शरीर में या उसकी गतिविधियों में कोई अचानक परिवर्तन नजर आ रहे हैं तो तुरंत इसके विषय में डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
  • बच्चे का वजन और उसकी हाइट को लगातार ना पता रहना चाहिए।
  • वैसे तो सामान्यता बच्चे को पीट केवल ही लिटाया जाता है। परंतु विशेषज्ञों का यह कहना है कि बच्चे को पेट के बल लेट आने से बच्चे की पेट की मांसपेशियों में खिंचाव आता है। उसका पाचन तंत्र सही रहता इसलिए बच्चे को 1 महीने का होने तक 2 से 3 मिनट के लिए पेट केवल जरूर लेट आए तथा जैसे जैसे वह बड़ा हो उसको पेट के बल लेट आने की समय अवधि भी बढ़नी चाहिए बच्चे के सामने एक खिलौना रख देना चाहिए। जिससे वह अपने हाथ पैर को तेज से चलाएं और खिलौने को पकड़ने का प्रयास करता रहे इससे शरीर की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होता है। और बच्चे का विकास ठीक प्रकार से होता है।
  • कुछ समय के लिए बच्चे के साथ खेलना चाहिए। इससे बच्चे के साथ आपका भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है।
  • हर समय बच्चे को एक कमरे में बंद नहीं रखना चाहिए क्योंकि अगर वह सबसे मिलता रहेगा तो उसे सबके प्रति रुचि उत्पन्न होगी परंतु अगर उसे एक कमरे में बंद रखा गया तो वह ज्यादा लोगों के बीच बीमार पड़ सकता है।

1 महीने के शिशु के विकास के बारे में माता-पिता को कब चिंतित होना चाहिए?

नीचे हमने कुछ लक्षण स्पष्ट किए हैं। यदि यह लक्षण बच्चे में दिख रहे हैं तो माता-पिता को तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेने चाहिए।

  • यदि शिशु ठीक प्रकार से दूध नहीं पी रहा।
  • आसपास की वस्तुओं को हिलाने डुलाने या खिलौनों से खिलाने पर भी बच्चा किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दे रहा।
  • मां के किसी प्रकार की आवाज देने पर बच्चा प्रतिक्रिया नहीं दे रहा।
  • आंखों में अचानक रोशनी डालने पर यदि बच्चा अपनी पलक नहीं झपक रहा तो समझना चाहिए कि बच्चा बीमार है।
  • यदि शिशु के शरीर की मांसपेशियों में सूजन हो रही है या उसका पेट फूल रहा है। तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
  • यदि शिशु स्तर लेटा हुआ है तथा फिर भी उसके शरीर में कंपन हो रही है।

इस महीने की चेकलिस्ट (check list of month)

  • पैसा मैं जिस समय को डॉक्टर ने निर्धारित किया है उस समय पर शिशु को चेकअप के लिए लेकर आए।
  • डॉक्टर से इस बात का परामर्श लें कि आप किसी भी प्रकार का सप्लीमेंट ले सकती हैं या नहीं क्या यह शिशु के स्वास्थ्य के लिए ठीक होगा।
  • शिशु के जन्म से लेकर 6 सप्ताह तक बहुत सारी टीके लगते हैं। इन सभी टीके की एक लिस्ट बनाएं और उसकी तारीख थी उसके आगे नोट करें इन सभी टीको को उसकी तारीख के समय बच्चे को लगाएं इससे बच्चा विभिन्न बीमारियों से बचाता है एवं स्वस्थ रहता है।
  • डिलीवरी के 6 हफ्ते बाद अपना चेकअप जरूर करें इससे यह पता चलता है कि मां के अंदर क्या दिक्कत है हो रही है।
  • शिशु का एक महा पूरा होने पर उसका फोटो जरूर खीचें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

Q. क्या नवजात 1 माह के शिशु के लिए पैसि फायर इस्तेमाल करना ठीक है?

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार समय से पहले पैसे पावर का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। यदि बच्चे पर पैसे पार का इस्तेमाल किया जाता है तो वह जल्द ही स्तनपान करना छोड़ देता है। इसलिए जवाब बच्चे को स्तनपान करवाना छुड़वाना चाहते हैं तो पैसे फायर का इस्तेमाल करना चाहिए

Q. मैं अपने रोते हुए बच्चे को कैसे शांत करवा सकती हूं?

वैसे तो बच्चे को शांत करवाने का कोई रामबाण उपाय नहीं है परंतु बच्चे को लोरी सुना कर किया उसे विभिन्न तरीके के रंग-बिरंगे खिलौनों से बहला कर या उसे गोद में इधर-उधर घुमाने से बच्चे को शांत कराया जाता है। अगर यह तरीके भी काम ना आए तो बच्चे को एक मधुर धुन सुना कर शांत करवाया जा सकता है।

Q. शिशु क्यों रोते हैं?

शिशु के रोने के विभिन्न कारण हो सकते हैं यह कोई निश्चित नहीं है कि शिशु किस कारण से रोता है क्योंकि शिशु बोल कर अपनी बात को नहीं समझा सकता। इसलिए वह रो कर कर अपनी बात को कहना चाहता शिशु को भूख लगने के कारण उसका डायपर गीला होने के कारण उसे गैस बनने के कारण नींद आने के कारण अधिक देर लेटा होने के कारण या स्वास्थ्य समस्या होने के कारण वह रोता है। एक पौधे की बेहतर देखभाल के द्वारा ही एक पौधा बनकर एक पेड़ बनता है। जो सभी को छाया एवं फल प्रदान करता है इसी प्रकार एक शिशु की देखरेख भी बहुत ही सहजता पूर्वक करनी चाहिए क्योंकि आगे चलकर मैं अपने परिवार का सहारा बनता है और अपने परिवार की देखभाल करता है।

निष्कर्ष

इसका आर्टिकल में हमने आपको नवजात शिशु जिसकी उम्र 1 महीना हुई है। उसकी गतिविधियों के विषय में जानकारी प्रदान की है इसमें हमने बताया कि शिशु को किन-किन गतिविधियां के द्वारा उसकी स्वास्थ्य की जानकारी ली जा सकती है। उसे किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है बच्चे की किन-किन आदतों को देखकर उसके स्वास्थ्य का अंदाजा लगाया जा सकता है उसमें कितने प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं एवं कैसे बीमारियों का इलाज हो सकता है।

यदि आपके घर में भी कोई छोटा 1 महीने का बच्चा है। और आप भी उसकी देखभाल करने के लिए बहुत सजग हैं तो यह आर्टिकल आप ही के लिए आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़ कर 1 महीने के बच्चे के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

ऊपर आर्टिकल से संबंधित यदि आपके मन में कोई प्रश्न आ रहा है तो नीचे दिए हुए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं हमें आपका उत्तर देने में हर्ष होगा हमारा आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद।

रिया आर्या

मैं शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश की रहने वाली हूँ। शुरू से ही मुझे डायरी लिखने में रुचि रही है। इसी रुचि को अपना प्रोफेशन बनाते हुए मैं पिछले 3 साल से ब्लॉग के ज़रिए लोगों को करियर संबधी जानकारी प्रदान कर रही हूँ।

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