प्रेगनेंसी के दौरान कब और कितनी बार अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए? | Pregnancy Me Sonography Kab Karna Chahiye

आज भारत में प्रसव से पहले शिशु की स्थिति जानने के लिए तथा उसके स्वास्थ्य के विषय में पता करने के लिए अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया चली है। बच्चे को जन्म देने से पहले हर निर्धारित अंतराल के बाद डॉक्टर के द्वारा अल्ट्रासाउंड का प्रावधान किया गया है। प्रेगनेंसी के दौरान कितने अल्ट्रासाउंड कराने चाहिए और कब करानी चाहिए। (Pregnancy me sonography) इसके विषय में बहुत सारे प्रेग्नेंट महिलाओं को जानकारी नहीं होती।

किस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको प्रेगनेंसी के दौरान कब और कितनी बार अल्ट्रासाउंड कराना (Pregnancy me Sonography kab aur kitni karane chahiye) चाहिए। इसके विषय में जानकारी प्रदान करेंगे यदि आप इस टॉपिक के विषय में जानकारी चाहते हैं तो हमारे आर्टिकल को अंत तक पढ़ें।

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अल्ट्रासाउंड क्या होता है? | What is ultrasound?|

अल्ट्रासाउंड एक प्रकार का इमेजिंग टेस्ट होता है। (Sonography kya hai?)इसमें अल्ट्रावायलेट रेस के माध्यम से शरीर के अंदरूनी हिस्सों की जानकारी पता होती है। गर्भवती महिलाओं के रक्त ह्रदय रक्त वाहिनी या कोशिकाओं आदि के विषय में जानकारी प्राप्त होती है एवं भ्रूण की स्थिति की तस्वीरें अल्ट्रासाउंड के माध्यम से पता की जा सकती है। अल्ट्रासाउंड से बच्चे के अंदर किसी भी प्रकार का विकार या बच्चे के स्वस्थ होने की जानकारी प्राप्त होती है।

प्रेगनेंसी के दौरान कब और कितनी बार अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए Pregnancy Me Sonography Kab Karna Chahiye

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड के प्रकार | types of ultrasound in pregnancy

अल्ट्रासाउंड के बहुत सारे प्रकार होते हैं।(Sonography ke prakar) डॉक्टर के परामर्श पर गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए। नीचे कुछ अल्ट्रासाउंड के प्रकार स्पष्ट किए गए हैं।

ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड (Transvaginal Ultrasound)

ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाऊंड गर्भावस्था के दौरान होने वाला अल्ट्रासाउंड में महिलाओं के गर्भ अंगों जैसे फैलोपियन ट्यूब यूट्रस अंडासय आदि की जांच की जाती है। ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाऊंड में गर्भवती महिला की योनि में छोटे उपकरण डालकर महिलाओं के प्रजनन अंगों की जांच की जाती है। एवं उनकी स्थिति का पता लगाया जाता है।

पेल्विक अल्ट्रासाउंड (Pelvic Ultrasound)

पेल्विक अल्ट्रासाऊंड को ट्रांस एब्डोमिनल अल्ट्रासाऊंड भी कहा जाता है। अल्ट्रासाउंड में महिला के गर्भ अंगो की जांच की जाती है। पेल्विक अल्ट्रासाउंड में सबसे पहले महिला के पेट के ऊपर एक जेल लगाया जाता है। इसके पश्चात एक ट्रांसड्यूसर को पेट के ऊपर घुमाया जाता है। और पेट के अंदर की स्थिति के विषय में पता लगाया जाता है।

3डी अल्ट्रासाउंड (3D Ultrasound)

पेल्विक अल्ट्रासाउंड एवं ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाऊंड एक प्रकार के 2D अल्ट्रासाउंड माने जाते हैं परंतु 3D अल्ट्रासाऊंड बिल्कुल अलग होता है।

 3डी अल्ट्रासाउंड में बच्चे की शारीरिक अंगों की छवि उनकी लंबाई, चौड़ाई उनके वजन आदि के विषय में जानकारी मिलती है। 3D के अंतर्गत गर्भ में पल रहे शिशु की छवि को देखा जा सकता है।

4डी अल्ट्रासाउंड (4D Ultrasound)

4D अल्ट्रासाउंड 3D अल्ट्रासाऊंड की तरह शरीर की विभिन्न गतिविधियों को देख सकता है 3D अल्ट्रासाऊंड में सिर्फ भ्रूण की छवि को  देखा जा सकता था। यह अल्ट्रासाउंड शिशु के स्वास्थ्य जानकारी के लिए शुरुआत से किया जा सकता है।

 परंतु 4D अल्ट्रासाउंड में भ्रूण का गति करने का वीडियो भी बनाया जा सकता है और उसे देखा जा सकता है। 4D अल्ट्रासाउंड से शिशु के अंदर विकृतियों का पता चलता है।

फेटल इकोकार्डियोग्राफी (Fetal Echocardiography)

फेटल इकोकार्डियोग्राफी एक प्रकार का अल्ट्रासाउंड है जिसे 18 महीने में किया जाता है। इस अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शिशु के तिल के स्वास्थ्य के विषय में जानकारी मिलती है।

 शिशु का दिल स्वस्थ है या नहीं या उसमें किसी प्रकार की समस्या है। इसके विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए फेटल इकोकार्डियोग्राफी का उपयोग किया जाता है।

डॉपलर अल्ट्रासाउंड (Doppler Ultrasound)

डॉपलर अल्ट्रासाउंड का उपयोग रक्त की प्रवाह को तथा रक्त में किसी प्रकार की कमी ना हो इसके विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है। डॉपलर अल्ट्रासाऊंड एक प्रकार का अल्ट्रासोनिक टेस्ट है।

 इसमें रक्त कणिकाओं से जुड़े विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं इसमें खून के नसों की जांच की जाती है कि खून का प्रवाह नसों में कम है। बंद हो रहा है या सामान्य है इसके विषय में जानकारी दी जाती है इसका इस्तेमाल हृदय रोग का निदान करने के लिए होता है।

गर्भावस्था में सोनोग्राफी क्यों जरूरी है?(Need of sonography)

गर्भावस्था की पहली तिमाही (पहले सप्ताह से 12वें सप्ताह का समय)

  • गर्भ के अंदर भ्रूण की स्थिति पता करने के लिए
  • भ्रूण फेलोपियन ट्यूब के अंदर है या नहीं इसके विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए
  • भ्रूण के सिंगल ट्विंस या ट्रिपल भ्रूण के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है।
  • गर्भ में भ्रूण की आयु गणना करने के लिए
  • गर्भ में भ्रूण के स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए।

गर्भावस्था की दूसरी तिमाही (12वें – 24वें सप्ताह का समय)

  • गर्भावस्था की दूसरी तिमाही अर्थात 18 में से 20 में सकते के बीच अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।
  • भ्रूण के लिंग की जानकारी प्राप्त होती है।
  • भ्रूण के आंतरिक अंगों जैसे श्वसन अंग पाचन अंग आदि सारे अंगों की जानकारी प्राप्त होती है।
  • 12वीं से 24 हफ्ते के अल्ट्रासाउंड में माता के प्लेसेंटा का आकार पता चलता है जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि भ्रूण स्वस्थ है अथवा नहीं।

गर्भावस्था की तीसरी तिमाही (24वें – 40वें सप्ताह का समय)

  • यह अल्ट्रासाउंड तीसरी तिमाही अर्थात तीसरे सप्ताह के बाद किया जाता है।
  • गर्भ में बच्चे का विकास किस प्रकार हो रहा है इसकी जानकारी प्राप्त होती है।
  • प्लेसेंटा का स्थान किस स्थान पर है इसकी जानकारी प्राप्त होती है।
  • गर्भाशय ग्रीवा में किसी भी प्रकार के अवरोध तो नहीं है इसकी जांच आवश्यक होती है

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करवाने के फायदे

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड कराने के बहुत सारे फायदे हैं (Sonography ke Fayde)जिन्हें नीचे पॉइंट्स के माध्यम से स्पष्ट किया है।

भ्रूण के स्वास्थ्य का पता लगाना –

अल्ट्रासाउंड के माध्यम से बच्चे के विकास की जांच की जा सकती है। यदि बच्चों में किसी प्रकार की बीमारी है तो उसे गर्भ के अंदर ही ठीक किया जा सकता है। बच्चे के अंदर डाउन सिंड्रोम जैसे विकारों का भी पता लगाया जा सकता है।

भ्रूण के शारीरिक विकास की निगरानी रखना –

घर में शिशु का शारीरिक  विकास अन्य बच्चों की तरह सामान्य है या नहीं या शिशु का वजन अन्य बच्चों की तरह अपने उम्र के हिसाब से सामान्य तरीके से विकसित हो रहा है। इसके विषय में जानकारी अल्ट्रासाउंड के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।

 यदि इसमें कुछ कमी पाई जाती है तो दवाइयों के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता है।

भ्रूण का स्थान –

अल्ट्रासाउंड के माध्यम से भ्रूण की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। कई बार सारी विकारों के कारण ढूंढ फैलोपियन ट्यूब में विकसित होने लगता है।

 इसे एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहा जाता है जिसमें भ्रूण का विकास गर्भाशय में ना होकर फेलोपियन ट्यूब में होना शुरू होता है। इसको मेडिकेशन के माध्यम से ठीक किया जा सकता है।

गर्भाशय व प्लेसेंटा की निगरानी करना –

गर्भाशय मैं प्लेसेंटा की जानकारी और उसके स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।

दर्द रहित सुरक्षित तकनीक –

अल्ट्रासाउंड बिल्कुल दर्द रहे प्रक्रिया है। इसमें शिशु को किसी भी प्रकार के दर्द का एहसास नहीं होता। गर्भवती महिला को भी कोई इंजेक्शन या चीरा नहीं लगाया जाता। अल्ट्रासाउंड मैं बिल्कुल दर्द महसूस नहीं होता।

दिल का स्वास्थ्य समझना –

अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शिशु के विकास के साथ-साथ मां के स्वास्थ्य के विषय में पता चलता है मां की धड़कनों के साथ-साथ शिशु के दिल के धड़कन भी सुनी जा सकती है और उसके हृदय की सामान्य स्थिति में होने का पता लगाया जाता है।

अजन्मे बच्चे की छवि देखना-

3D और 4D अल्ट्रासाउंड के माध्यम से अजन्मे बच्चे की छवि एवं उनकी शारीरिक गतिविधियों को देखा जा सकता है इससे माता के अंदर अपने बच्चे की एक छवि तैयार होती है जिसको देखकर वह प्रोत्साहित और आनंद महसूस करती है ।

तत्काल परिणाम जानना –

अल्ट्रासाउंड करवाने के बाद अधिक देर तक इसके रिजल्ट के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता अल्ट्रासाउंड के कुछ समय पश्चात भी इसके परिणामों की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड के नुकसान

गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड कराना सुरक्षित होता है। इससे शिशु के स्वास्थ्य के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। अल्ट्रासाउंड बिल्कुल सटीक परिणाम देते हैं।

 परंतु अल्ट्रासाउंड के कुछ नुकसान (Sonography ke nuksaan) भी है जिन्हें पॉइंट के माध्यम से नीचे स्पष्ट किया है ।

  • अल्ट्रासाउंड के दौरान महिला के पेट पर एक जेल नुमा पदार्थ लगाया जाता है जो अगर महिला के पेट के अंदर चला जाए तो नुकसान भी हो सकता है।
  • कुछ अल्ट्रासाउंड के दौरान भ्रूण से संबंधित गलत जानकारी भी प्राप्त हो सकती है।
  • यदि भ्रूण में कोई कमी पाई जाती है उसको पूरा करने के लिए अमीनो सेंटेंसेस और कैरीओसिस टेस्ट करने पड़ते हैं।
  • ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड के कारण गर्भवती महिला में चिंता, दर्द या योनि से रक्तस्राव जैसी समस्या हो सकती है।

प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड कब और कितनी बार करवाना चाहिए? | Pregnancy Me Sonography Kab Karna Chahiye

प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड कराना बिल्कुल सुरक्षित होता है इससे शिशु की स्थिति एवं उसके स्वास्थ्य के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। भारत में अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। इन कानूनों के अंतर्गत कि आप अल्ट्रा काम करवा सकते हैं भारत में लिंग की जांच करना कानूनी रूप से अवैध माना जाता है।

गर्भावस्था के 8 से 14 सप्ताह पर पहला अल्ट्रासाउंड और 18 से 20 में सबसे पर दूसरा अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए। इससे होने वाली आशमान्यता का पता चलता है।

अल्ट्रासाउंड के दौरान क्या होता है?

पेट वाला अल्ट्रासाउंड –

पेट के जरिए किए जाने वाले अल्ट्रासाउंड में सबसे पहले डॉक्टर गर्भवती महिला को पानी पीने के लिए कहते हैं। उसके बाद महिला को पीठ के बल लिटा कर उसके पेड़ पर एक जेल लगाया जाता है।

 जेल लगाने के बाद सोनोग्राफी हैंडल के माध्यम से पूरे पेट पर इस सोनोग्राफी हैंडल को घुमाया जाता है और रेस के माध्यम से पेट के अंदर के सभी अंगों एवं शिशु की स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाती है।

योनि अल्ट्रासाउंड –

वैसे तो पेट वाला अल्ट्रासाउंड ही सबसे ज्यादा कारगर माना जाता है परंतु यदि पेट वाले अल्ट्रासाउंड में अच्छे परिणाम नहीं आते तो योनि अल्ट्रासाउंड के माध्यम से जांच की जाती है योनि अल्ट्रासाउंड में सबसे पहले महिला को गाउन पहना कर  पीठ के बल लेट आया जाता है।

 इसके पश्चात महिला की योनि में एक यंत्र डाला जाता है जिसके माध्यम से गर्व के विषय में जानकारी प्राप्त होती है यह प्रक्रिया 30 मिनट की होती है।

गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड के लिए खुद को कैसे तैयार करें?

यह अल्ट्रासाउंड के प्रकार पर निर्भर करता है कि गर्भावस्था के दौरान खुद को किस प्रकार के अल्ट्रासाउंड के लिए तैयार करना है।(Sonography ki taiyari kaise kren?)

यदि पेट वाला अल्ट्रासाउंड होने वाला है तो सबसे पहले महिला को अपने मूत्राशय को पूरी तरीके से भरना होगा इसके लिए महिला को दो-तीन घंटे पहले तीन चार गिलास पानी पीना होगा और अल्ट्रासाउंड के पहले तक उसे बाथरूम नहीं जाना होगा। जिसके बाद पेट वाला अल्ट्रासाउंड किया जाता है।

योनि अल्ट्रासाउंड में महिला को कुछ देर पहले कुछ भी खाने पीने के लिए मना किया जाता है। योनि अल्ट्रासाउंड से पहले डॉक्टर की द्वारा दिए गए परामर्श को ध्यान से सुन कर उसे फॉलो करना चाहिए।

 क्या अल्ट्रासाउंड बार-बार करने से गर्भ में पल रहे शिशु के विकास पर किसी तरह का असर होता है?

सभी प्रकार के अल्ट्रासाउंड शिशु एवं गर्भवती महिला दोनों के लिए बिल्कुल सुरक्षित होते हैं। (Sonography ke prabhav) शिशु के लिए बार-बार अल्ट्रासाउंड कराना सुरक्षित है या नहीं इसके विषय में अभी शोध नहीं हो पाया है। इसके विषय में जानकारी प्राप्त सही तरीके से नहीं है इसके लिए पहले डॉक्टर से परामर्श ले लेना चाहिए।

टॉपिक से संबंधित प्रश्न एवं उनके उत्तर (FAQ)

Q. अल्ट्रासाउंड क्या होता है?

अल्ट्रासाउंड अल्ट्रावायलेट रेस के माध्यम से गर्भ के अंदर पल रहे शिशु की स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।

Q. अजन्मे बच्चे की छवि कैसे देखी जा सकती है?

अजन्मे बच्चे की छवि 3डी और 4डी अल्ट्रासाउंड के माध्यम से देखी जा सकती है।

Q. अल्ट्रासाउंड की पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड का समय कितना होता है?

अल्ट्रासाउंड की पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड का समय 12 सप्ताह होता है।

Q. पेट वाला अल्ट्रासाउंड कैसे किया जाता है?

पेट वाले अल्ट्रासाउंड में 3 से 4 घंटे घंटे पहले महिला को पानी पिला कर एवं उसके मूत्राशय को भरकर पीठ के बल लेटा कर पेट पर जेल लगाकर अंदर की स्थिति के विषय में पता लगाया जाता है।

निष्कर्ष :

इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको प्रेगनेंसी के दौरान कब और कितनी बार अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए  (Pregnancy Me Sonography Kab Karna Chahiye) के विषय में जानकारी देने का पूरा प्रयास किया है। यदि फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न है तो आप नीचे दिए हो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।

हमारे आर्टिकल के द्वारा प्रदान की जाने वाली जानकारी बिल्कुल ठोस तथा सटीक होती है। यदि आपको हमारा आर्टिकल पसंद आए तो आप इसे अवश्य शेयर करें। हमारा आर्टिकल पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।

रिया आर्या

मैं शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश की रहने वाली हूँ। शुरू से ही मुझे डायरी लिखने में रुचि रही है। इसी रुचि को अपना प्रोफेशन बनाते हुए मैं पिछले 3 साल से ब्लॉग के ज़रिए लोगों को करियर संबधी जानकारी प्रदान कर रही हूँ।

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