समाज क्या है? | समाज की परिभाषा, अर्थ एवं विशेषताएं | Samaj Kya Hai

|| समाज क्या है? | Samaj Kya Hai | समाज का अर्थ | what is society | समाज में समानता और असमानता दोनों क्यों जरूरी हैं? | What is the meaning of society | समाज की परिभाषा | definition of society ||

बहुत से लोगों के मन में इस प्रकार के प्रश्न उठते हैं कि आखिर समाज क्या है। तो आज के इस लेख में हम आपको इसी बारे में जानकारी देंगे कि समाज क्या है, इसकी क्या विशेषताएं हैं और समाज का क्या अर्थ है। वैसे तो हम जिस परिवेश में रह रहे हैं उसे ही समाज कहते हैं। अगर मैं सरल भाषा में बताऊं तो हमारे चारों तरफ जो लोग हैं जिनसे हम मिलते-जुलते हैं बातें करते हैं उन्हें ही समाज कहते हैं।

तो आज के इस लेख में हम इन्हीं सब बातों पर चर्चा करेंगे तो आप हमारे लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। जिससे आप इसके बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त कर पाए। सबसे पहले हम जानेंगे कि Samaj Kya Hai।

समाज क्या है? | what is society?

बोलचाल की भाषा में व्यक्तियों के समूह के लिए समाज बोला जाता है। अगर सिंपल भाषा में बताऊं तो जैसे कि हमारे आसपास जो भी लोग रह रहे हैं उन्हें समाज बोला जाएगा। इसी के साथ हमारे जीवन में अधिकतर टाइम समाज शब्द का प्रयोग किया जाता है। 

समाज क्या है समाज की परिभाषा, अर्थ एवं विशेषताएं Samaj Kya Hai

जब भी हम लोग एक से अधिक व्यक्तियों के समूह में या फिर एक से अधिक व्यक्तियों के समूह के बारे में बात करते हैं तो उसके लिए समाज शब्द का प्रयोग किया जाता है। अब जैसे कि आर्य समाज, ईसाई समाज, ब्रह्म समाज आदि हैं।

साधारण बोलचाल की भाषा में समाज शब्द का प्रयोग कुछ व्यक्तियों के समूह के लिए किया जाता है और हमारी आम जिंदगी में अधिकतर समय आपने समाज शब्द का प्रयोग करते हुए लोगों को देखा होगा। जैसे कि अगर कोई व्यक्ति गलत काम कर देता है तो लोग बोलते हैं कि आप समाज में इसकी क्या ही इज्जत रह गई है। इसी के साथ कोई व्यक्ति अगर बहुत अच्छा काम करता है 

तो लोग कहते हैं कि उसने समाज में अपना नाम रोशन किया है। तो ऐसे में कुछ लोगों को यह समझ में नहीं आता है कि समाज है क्या। तो मैं आशा करता हूं अब आपको पता चल गया होगा कि वास्तव में समाज क्या है। अगर मैं सीधे तौर पर बताऊं तो व्यक्तियों के समूह को ही समाज कहते हैं। जहां पर 1 से अधिक लोगों के  बारे में चर्चा की जा रही हो उसमें समाज शब्द का प्रयोग किया जाएगा।

समाज का क्या अर्थ है? | What is the meaning of society?

समाज शास्त्र के हिसाब से समाज शब्द का अर्थ व्यक्तियों के समूह से ना हो करके उनके बीच में पाए जाने वाले संबंधों की व्यवस्था से है। और इस व्यवस्था का निर्माण अनेक सामाजिक संबंधों के कारण होता है। हमारे यार, परिवार, दोस्त, रिश्तेदार सब एक समाज में आते हैं जिनके साथ हमारा रोज मिलना जुलना होता है या फिर वह हमारे सुख दुख में काम आते हैं। इसी के साथ हमारे पड़ोसी और मिले-जुले वाले भी समाज में ही आते हैं। 

इसीलिए जब कोई व्यक्ति कोई खराब काम करता है तो लोग कहते हैं इसकी समाज में क्या इज्जत है और जब कोई बहुत अच्छा काम करता है तो सब लोग कहते हैं उसकी समाज में काफी ज्यादा इज्जत है। मतलब की अगर आपने बहुत अच्छा काम किया है तो आपके यार परिवार रिश्तेदार सब आप से प्रेम करेंगे।

वहीं अगर आपने कोई खराब काम किया है तो सब आप से नफरत करना शुरू कर देंगे।  हम लोगों ने अपने आसपास रहने वाले लोगों अपने रिश्तेदारों और संबंधियों को ही समाज कहा है। अगर आप समाज का अर्थ अच्छे से समझ गए हैं तो हम अपने लेख में आगे बढ़ते हैं। और आपको समाज की परिभाषा बताते हैं।

समाज की परिभाषा | definition of society

अभी हम लोग जानेंगे कि समाज की परिभाषा क्या है? दोस्तों अलग-अलग लेखक के हिसाब से समाज की परिभाषा अलग-अलग दी गई है तो हम आपको सभी लेखकों द्वारा दी गई समाज की परिभाषा के बारे में बताएंगे। कि अलग-अलग लोगों ने समाज के बारे में क्या राय दी है।

जैसा कि आप जानते हैं हर लेखक का अपना एक अलग मत होता है और वह उसी के हिसाब से परिभाषा देता है। तो यहां पर भी लेखकों ने अपनी अलग-अलग राय दी है। तो आइए जानते हैं कि समाज की क्या परिभाषा है। जिससे आप समाज के बारे में अच्छे से समझ सकेंगे।

मैकाइवर और पेज-

मैकाइवर और पेज के अनुसार समाज नीतियों कार्य प्रणालियों पारस्परिक साहित्य और अधिकारों अनेक समूहों और विभाजन ओ मानव व्यवहार के नियंत्रण और स्वतंत्रता ओं की एक व्याख्या है। और इसी व्यवस्था को हम लोग समाज कहते हैं। जैसा कि मैं आपको पहले भी बता चुका हूं समाज रिश्तो और संबंधों से बना हुआ एक जाल है जो कि हमेशा परिवर्तित होता रहता है।

गिंसबर्ग-

गिंसबर्ग के अनुसार समाज ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो निश्चित संबंधों व्यवहार के तरीकों द्वारा संगठित है। इसके साथ ही उन व्यक्तियों से भिन्न है जो इस प्रकार के संबंधों द्वारा बने हुए नहीं हैं या जिनके व्यवहार उनसे भिन्न हैं। अब जैसे कि हर किसी का अलग समाज है जैसे कि मुस्लिम समाज, हिंदू समाज, ईसाई समाज और इन सभी समाज के अपने अलग-अलग मत हैं।

और यह सभी लोग अलग-अलग परंपराओं को फॉलो करते हैं जो कि इनके पूर्वजों द्वारा चलाई गई हैं। तो इस प्रकार से समाज व्यक्तियों का समूह तो है लेकिन वह निश्चित संबंधों व्यवहार के तरीकों द्वारा संगठित किया गया है। और उन व्यक्तियों से भिन्न है जो इस प्रकार के संबंधों द्वारा बने हुए नहीं हैं। 

  • व्यक्तियों के समूह को समाज कहते हैं। मतलब कि समाज के लिए एक से अधिक व्यक्ति होने चाहिए।
  • समाज में समानता और असमानता दोनों होती हैं। लेकिन समानता मुख्य होती है मतलब कि इन व्यक्तियों के समान हित और उद्देश्य होने चाहिए।
  • समाज के व्यक्तियों के संबंध प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के हो सकते हैं।
  • यह सभी संबंध परिवर्तनशील होते हैं जिसका मतलब होता है कि समाज में संबंध बनते और बिगड़ते रहते हैं। जैसा कि आपने देखा होगा जब हमारे नए रिश्ते बन जाते हैं तो बहुत से पुराने रिश्ते खत्म होते चले जाते हैं। तो इस प्रकार से समाज में संबंध बनते और बिगड़ते रहते हैं।
  • संबंधों की इसी व्यवस्था को समाज बोला जाता है। 

 रयूटर-

इन्होंने  समाज की परिभाषा देते हुए कहा है समाज एक अमूर्त शब्द है जो एक समूह के 2 या उससे अधिक सदस्यों के बीच स्थित पारस्परिक संबंधों की जटिलता का बोध कराता है। अब जैसे कि किसी समाज के दो या फिर उससे अधिक लोग एक स्थान पर रह रहे हैं तो वह उनका समाज है जो कि उनके बीच में पारम्परिक संबंधों की जटिलता का बोध करा रहा है।

सभी समाज की अपनी अलग अलग विशेषताएं होती हैं और अपनी अलग अलग नीतियां होती हैं। जो कि उनके पूर्वजों से चली जाती हैं। इसीलिए उन्होंने समाज की परिभाषा देते हुए इस बात को आगे रखा है कि एक समूह के ही सदस्य समाज में आते हैं। अब सदस्यों की संख्या कितनी भी हो सकती है लेकिन समाज में एक से अधिक सदस्य होने चाहिए।

बोगार्ड्स-

इनके अनुसार समाज मनुष्यों का एक ऐसा समूह है जिसमें सार्वभौमिक रूप से मानव रुचि की समानता पाई जाती हैं।  जैसे कि इनका कहने का मतलब है कि वह मनुष्य जो कि समान रुचि और समान धर्म एवं संप्रदाय को फॉलो करते हैं उसे समाज बोलते हैं। और हर समाज की अपनी एक रूचि होती है और जो भी व्यक्ति उस रुचि में समान होता है वह उसका समाज हो जाता है।

समाज की विशेषताएं | features of society

प्यारे दोस्तों अभी तक हम लोगों ने समाज का अर्थ एवं इसकी परिभाषा को जाना अब हम लोग जानेंगे कि समाज की क्या विशेषताएं होती हैं। इसी के साथ समाज हमारे लिए क्यों जरूरी है और किन-किन जगहों पर समाज हमारे काम में आ सकता है। इन सब बातों पर अब हम चर्चा करेंगे तो आप हमारे लेख को  अंत तक जरूर पढ़ें। आपने हमारे लेख को यहां तक पढ़ा इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आइए जानते हैं समाज की विशेषताएं क्या है?

1. समाज अमूर्त है:- 

केवल व्यक्तियों के संग्रह को ही समाज नहीं बोला जाता है बल्कि समाज व्यक्तियों के बीच की संबंधों की व्यवस्था है और संबंधों की स्थापना जागरूकता के द्वारा होती है। और जैसा कि आप जानते हैं जागरूकता का संबंध मस्तिष्क से होता है।

मस्तिष्क की चेतना का कोई आकार प्रकार नहीं है और इसे देखा और छुआ भी नहीं जा सकता है इसीलिए जिसे देखा और छुआ नहीं जा सकता हो वह मूर्त नहीं है। इसीलिए समाज अमूर्त है। अगर समाज का अर्थ केवल व्यक्तियों के समूह से होता तो हम सभी समूह के लोगों को अपने समाज में शामिल कर सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं है समाज केवल उन व्यक्तियों का समूह है जो कि एक समूह के हैं या फिर उनके मत एक हैं।

2. समाज व्यक्तियों का समूह नहीं है:-  

प्यारे दोस्तों समाज का मतलब केवल व्यक्तियों के समूह से नहीं है। समाज सामाजिक संबंधों की व्यवस्था है। इसी के साथ समाज भौतिक प्राणियों का समूह नहीं है। यह तो इन भौतिक प्राणियों के बीच जो संबंध पाया जाते हैं उनकी एक व्यवस्था का समूह है। इसीलिए समाज को केवल व्यक्तियों का समूह बोला जाना बिल्कुल गलत होगा। समाज का मतलब व्यक्तियों के बीच सामाजिक संबंधों की व्यवस्था है।

3. समाज मनुष्य तक ही सीमित नहीं है:-

अपने समाज की परिभाषा को पढ़कर इतना तो जान लिया होगा कि समाज केवल मानव प्राणियों तक ही सीमित नहीं है। बल्कि समाज पशुओं में भी पाया जाता है। गाय, भैंस, बकरी, चीटियों और मधुमक्खियों में भी सामाजिक संगठन पाए जाते हैं। जीवन का जितना भी निम्न हो जरूरत की मात्रा भी उतनी ही कम होती जाती है।

जैसा कि आप जानते हैं जागरूकता सामाजिक संबंधों का आधार है और इसीलिए जागरूकता सिर्फ मनुष्य में ही पाई जाती है। इसीलिए समाजशास्त्रीय अर्थों में समाज का अर्थ सिर्फ मनुष्य समाज से ही होता है। कुछ कारणों में पशुओं में जागरूकता पाई जाती है तो वह बहुत निम्न मात्रा में पाई जाती है। लेकिन फिर भी हम लोग  समाज को मनुष्य तक ही सीमित नहीं रख सकते हैं और ना ही समाज मनुष्य तक सीमित है।

4. समाज में समानता और असमानता:-

समानता और असमानता दोनों समाज में पाई जाती हैं। यह दोनों तत्व समाज के लिए आवश्यक भी हैं। अब हम यहां पर जानेंगे की समानता और असमानता दोनों तत्व समाज के लिए क्यों आवश्यक है। हमारे सामाजिक जीवन में समानता और असमानता का क्या रोल है।

इन सब बातों के बारे में अब हम चर्चा करेंगे तो आप समानता और असमानता दोनों को अंत तक जरूर पढ़ें। जिससे आप इसके बारे में भी अच्छे से समझ पाए और जान सके कि समाज का इस में क्या रोल है। और समाज के लिए समानता और असमानता दोनों तत्व क्यों आवश्यक है। इसके बारे में समझना भी काफी जरूरी हो जाता है तो आइए जानते हैं।

  1. समानता:-  शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की समानता समाज में आवश्यक हैं। मनुष्य की शारीरिक बनावट समान होती है इसी के साथ उनकी आवश्यकताएं भी समान होती हैं। आवश्यकताओं की समानता के लिए एक दूसरे से मिलते जुलते हैं और सहयोग स्थापित करते हैं। किसी के साथ समानता समाज का भौतिक तत्व भी है।
  2. असमानता:- समाज में समानता के साथ-साथ असमानता भी काफी आवश्यक हो जाती है तो आइए जानते हैं असमानता समाज में क्यों आवश्यक है। यदि सभी व्यक्ति समान हो तो उनके संबंध चीटियों और मधुमक्खियों के समान ही सीमित होंगे लेकिन उसमें पारस्परिक आदान-प्रदान ना हो पाए तो सहयोग की भावना का विकास भी उत्पन्न नहीं होता है। इसी कारण समाज में समानता और असमानता दोनों होना आवश्यक है। हम एक उदाहरण के तौर पर समझते हैं यदि समाज में सिर्फ पुरुष ही पुरुष होते तो संतान उत्पन्न नहीं हो पाती और मानव अगली पीढ़ी को जन्म देने में असमर्थ हो जाता। इसीलिए समानता के साथ-साथ असमानता भी काफी जरूरी हो जाती है।

5. समाज में सहयोग और संघर्ष:-

समाज में सहयोग और संघर्ष दोनों आवश्यक हैं। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसका जीवन सहयोग पर आधारित होता है। इसीलिए मनुष्य सहयोग के द्वारा ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है। जैसा कि आप जानते हैं सहयोग दो प्रकार के होते हैं प्रत्यक्ष सहयोग और अप्रत्यक्ष सहयोग। अभी हम लोग दोनों प्रकार के सहयोग के बारे में जानेंगे कि प्रत्यक्ष सहयोग क्या होता है और अप्रत्यक्ष सहयोग क्या होता है। इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि इन दोनों सहयोग का क्या महत्व है तो आइए जानते हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग क्या है?

  1. प्रत्यक्ष सहयोग:- आमने-सामने के संबंधों द्वारा किया जाने वाला सहयोग प्रत्यक्ष सहयोग कहलाता है। अब इस सहयोग को हम एक एग्जांपल के तौर पर समझते हैं जैसे कि परिवार के सदस्यों का सहयोग या फिर पड़ोसियों के सहयोग को हम लोग प्रत्यक्ष सहयोग बोलते हैं। क्योंकि यह सहयोग एक निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है जैसे कि पति-पत्नी के प्रत्यक्ष सहयोग द्वारा ही प्रजाति की निरंतरता कायम होती है। इसी प्रकार मैच के खिलाड़ियों का उद्देश्य मैच जीतना होता है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सभी खिलाड़ी यह दूसरे का प्रत्यक्ष रुप से सहयोग करते हैं। जिससे मैच आसानी से जीता  जा सके।
  2. अप्रत्यक्ष सहयोग:-  अप्रत्यक्ष सहयोग का उद्देश्य समान होता है किंतु इसकी प्राप्ति असमान कार्य द्वारा की जाती है। जैसे कि हम एक एग्जांपल के तौर पर समझे श्रम विभाजन इसमें  व्यक्ति विभिन्न कार्यों का संपादन करते हैं। किंतु इससे समान वस्तुओं का उत्पादन होता है। अगर हम सीधे तौर पर समझे तो सरल समाज में प्रत्यक्ष सहयोग पाया जाता है। वही जटिल समाज में अप्रत्यक्ष सहयोग पाया जाता है। क्योंकि इसमें सामाजिक संबंध अत्यधिक विस्तृत होते हैं। समाज के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों सहयोग काफी जरूरी हैं। इसीलिए व्यक्ति को समाज में रहने के लिए दोनों सहयोग की जरूरत पड़ती है।

संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

समाज क्या है?

आमतौर पर समाज शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के समूह के लिए बोला जाता है। लेकिन कई लेखकों ने समाज शब्द की परिभाषा को अलग-अलग शब्दों में व्याख्यान किया है। तो आप इसे डिटेल में समझने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ सकते हैं।

समाज का क्या अर्थ है? 

समाज शास्त्र के अनुसार समाज शब्द का अर्थ व्यक्तियों के समूह से ना हो करके उनके बीच में पाए जाने वाले संबंधों की व्यवस्था से है और इसके अनुसार समाज एक व्यवस्था है जो कि संबंधों पर टिकी हुई है।

समाज की परिभाषा क्या है?

अलग-अलग लोगों ने समाज की परिभाषा को अलग-अलग तरह से व्याख्यान किया है। लेकिन मैं आपको सीधे तौर पर बताना चाहूंगा कि समाज ऐसे व्यक्तियों का संग्रह है जो निश्चित संबंध व्यवहार के तरीकों द्वारा संगठित हैं।

समाज की क्या विशेषताएं हैं?

समाज की सभी विशेषताओं के बारे में जानने के लिए आप इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। इस लेख में हमने आपको समाज के बारे में काफी डिटेल में जानकारी बताई हुई है एवं इसकी विशेषताओं को भी शेयर किया है। 

समाज में समानता और असमानता दोनों क्यों जरूरी हैं?

समाज में समानता और असमानता दोनों काफी जरूरी है। क्योंकि यह दोनों समाज को विकसित करने के लिए और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने के लिए जरूरी होती है। आप इस लेख के माध्यम से समाज में समानता और असमानता की जरूरत को समझ सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion) :- 

आज हमारे द्वारा आप सभी को इस ब्लॉग पोस्ट के अंतर्गत समाज क्या है? | समाज की परिभाषा, अर्थ एवं विशेषताएं | Samaj Kya Hai इसके बारे में बताया गया है। यदि आप सब लोग भी इस समाज स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। तो हमारा यह लेख आपके लिए बहुत ही फायदेमंद साबित रहा होगा क्योंकि इसके अंतर्गत हमारे द्वारा आप सभी को इससे संबंधित संपूर्ण जानकारी दे दी गई है। हमारे द्वारा दी गई यह संपूर्ण जानकारी आप सभी को अवश्य ही पसंद आई होगी। यदि आपको यह संपूर्ण जानकारी पसंद आती है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताइए। साथ ही इस लेख को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले।

Mukesh Chandra

मुकेश चंद्रा ने बीटेक आईटी से 2020 में इंजीनियरिंग की है। वह पिछले 5 साल से सामाजिक.इन पर मुख्य एडिटर के रूप में कार्यरत हैं, उन्हें लेखन के क्षेत्र में 5 वर्षों का अनुभव है। अपने अनुभव के अनुसार वह सामाजिक.इन पर प्रकाशित किये जानें वाले सभी लेखों का निरिक्षण और विषयों का विश्लेषण करने का कार्य करते है।

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