दोस्तों, यदि आप लोग हिंदू धर्म से संबंधित है। तो आपने सूर्यग्रहण जैसी चीजों को अवश्य सुना व देखा होगा। परंतु इसके बारे में संपूर्ण जानकारी हम सब को भी नहीं होती है। हमारे पूर्वज हमें सूर्य ग्रहण से संबंधित तरह-तरह की कहानियां बताते हैं, परंतु असलियत में सच क्या है? इसके बारे में आप तभी जान सकते हैं। जब आप खुद इस विषय पर जानकारी हासिल करेंगे। यह तो हम सब जानते हैं कि सूर्य ग्रहण हमारे खगोलीय मंडल में होने वाली एक अद्भुत खगोलीय घटना होती है।
जो हमेशा से हमारे सौरमंडल के निर्माण से ही होती चली आ रही है। इसीलिए हम आपको यहां Surya grahan kab hota hai? इसके बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक दे रहे है। जो अवश्य ही आप लोगो के लिए बहुत ज्ञानवर्धक होगी। सूर्यग्रहण को लेकर प्राचीन काल से ही लोगों में बहुत ही उत्सुकता रहती है।
यही कारण है कि लोगों के बीच इसे लेकर तरह-तरह की कहानियां प्रचलित हैं, परंतु यदि विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए, तो इसका एक रहस्य है। जिसके बारे में आप सभी को जानना बेहद जरूरी है। हमारे सौरमंडल के केंद्र में स्थित सबसे बड़ा तारा सूर्य ही होता है। सूर्य के चारों ओर उपस्थित आठ ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं।
प्राचीन काल में लोग पौराणिक कथाओं तथा मिथको के आधार पर सूर्य ग्रहण की व्याख्या करते थे।परंतु विज्ञान के माध्यम से इसके सारे मिथ टूट चुके हैं। यही कारण है कि हम आपको यहां What is Solar Eclipse? How does solar Eclipse happen? इसके बारे में बताने जा रहे हैं ।
सूर्य ग्रहण कब होता है? | When does solar eclipse happen?
दोस्तों, कुछ ऐसे भी बच्चे होंगे। जो सूर्य ग्रहण के बारे में कोई भी जानकारी नहीं रखते हैं। तो हम उनको सबसे पहले यहां Surya grahan kab hota hai? इसके बारे में बताने जा रहे हैं। दोस्तों, सूर्यग्रहण आमतौर पर अमावस्या को होता है। परंतु यह सूर्यग्रहण हर अमावस्या को नहीं होता है क्योंकि जब अमावस्या होती है, तो उस दौरान चंद्रमा पृथ्वी के कक्षीय तल के बहुत नज़दीक होता है।
परंतु, यदि चंद्रमा पूरी तरह से गोलाकार कक्षा में उसी कक्षा में होता है, जिस कक्षीय तल के अंतर्गत पृथ्वी उपस्थित होती है, तो हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण होता। परंतु चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से 5 डिग्री झुकी हुई होती है। जिस कारण चंद्रमा की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती है। यह तो हम सब जानते हैं कि पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सूर्य की परिक्रमा करती है तथा चंद्रमा हमारी पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
इसी परिक्रमा के दौरान जब भी चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है तब चंद्रमा के द्वारा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर पड़ने से रोक लिया जाता है जिससे पृथ्वी के कुछ हिस्से पर अंधेरा छा जाता है इस पूरे सिस्टम को विज्ञान की नजरों में सूर्यग्रहण कहा जाता है यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक ही सीध में होते हैं। अर्थात चंद्रमा का जो हिस्सा पृथ्वी के सामने आता है, पृथ्वी के उतने हिस्से में सूर्य ग्रहण लगता है और अंधेरा छा जाता है।
सूर्य ग्रहण क्यों होता है? | Why does solar eclipse happen?
दोस्तों, सूर्य ग्रहण की स्थिति का बनना प्राकृतिक काल है। इसमें मनुष्य का को हस्तक्षेप नहीं होता है। यह तो हम सब जानते हैं कि सूर्य हमारे सौरमंडल में उपस्थित एक सबसे बड़ा तारा है तथा सूर्य सौरमंडल का एक सबसे विशाल पिंड भी। है सूर्य का व्यास 13 लाख 90 हजार किलोमीटर होता है।
यदि पृथ्वी की बात की जाए, तो पृथ्वी से हमारा सूर्य 108 गुना बड़ा है। हमारे सौरमंडल में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य ही होता है। सौरमंडल में सूर्य के चारों तरफ आठ ग्रह (जिसके अंतर्गत हमारी पृथ्वी से भी सम्मिलित होती है) क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और अन्य अव्यव उपस्थित होते हैं।
जो हमारे सूर्य की रात दिन परिक्रमा करते हैं। हमारी पृथ्वी का एक उपग्रह होता है, जिसे चंद्रमा कहते हैं। यह चंद्रमा हमारी पृथ्वी की परिक्रमा करता है अर्थात हम कह सकते हैं कि सूर्य की परिक्रमा हमारी पृथ्वी तथा पृथ्वी की परिक्रमा चंद्रमा करता है।
इसी परिक्रमा पथ के दौरान जब भी पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है अर्थात जब भी चंद्रमा की परछाई पृथ्वी पर पड़ती है और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता है। तो इसी स्थिति को चंद्रग्रहण कहते हैं। यही कारण है कि चंद्रमा के बीच में आने के कारण सूर्य ग्रहण पड़ता है।
सूर्य ग्रहण कितने प्रकार का होता है? | How many types of solar eclipse are there?
दोस्तों, सूर्य ग्रहण एक प्रकार का नहीं होता है। सूर्य ग्रहण भी अलग-अलग स्थिति में अलग-अलग प्रकार का हो सकता है। सूर्य ग्रहण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1. पूर्ण सूर्य ग्रहण 2.आंशिक सूर्य ग्रहण 3.वलयाकार सूर्य ग्रहण।
1. पूर्ण सूर्य ग्रहण :- दोस्तों, सूर्य ग्रहण का यह सबसे पहला प्रकार है। पूर्ण सूर्यग्रहण यह तब होता है, जब चंद्रमा पूरी तरीके से सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है। इस स्थिति में चंद्रमा के द्वारा सूर्य को पूर्ण रूप से घेर लिया जाता है और पृथ्वी पर इस स्थिति में पृथ्वी से केवल सूर्य का बाहरी हिस्सा ही दिखाई देता है।
इसे ही पूर्ण सूर्यग्रहण के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना गया है कि पूर्ण सूर्य ग्रहण पृथ्वी के कुछ हिस्सों में देखा जाता है। बाकी अन्य स्थानों पर सूर्य ग्रहण दिखाई देता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण का दायरा अधिकतम 200 से 250 किलोमीटर तक का ही होता हैम साथ ही साथ सूर्य ग्रहण का दायरा अधिकतम 7 मिनट का ही होता है।
2. आंशिक सूर्य ग्रहण :- दोस्तों, आंशिक सूर्य ग्रहण, सूर्य ग्रहण का ही दूसरा प्रकार होता है। आंशिक सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा के द्वारा सूर्य को आंशिक रूप से ही ढ़का जाता है। इस स्थिति में सूर्य का आंशिक प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता है और चंद्रमा की आंशिक परछाई पृथ्वी तक पहुंचती है।
इसे ही हम सब आंशिक सूर्यग्रहण के नाम से जानते हैं। जिसे अंग्रेजी में Partial solar eclipse कहते हैं। पृथ्वी के जिस भाग में भी सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती है। वहां इस प्रकार के सूर्यग्रहण को देखा जाता है। आंशिक सूर्यग्रहण पृथ्वी के कई हिस्सों में एक साथ दिखाई देता है।
3. वलयाकार सूर्य ग्रहण :- वलयाकार सूर्य ग्रहण, सूर्य ग्रहण का तीसरा प्रकार है। इस प्रकार के सूर्य ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। जिस कारण चंद्रमा के द्वारा सूर्य का मध्य भाग ढक लिया जाता है, परंतु इस स्थिति में भी सूर्य की बाहरी परत का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचता है। इस प्रकार के ही सूर्य ग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं। इस स्थिति में सूर्य का बाहरी क्षेत्र एक डायमंड रिंग की तरह चमकता है।
प्राचीन भारतीय खगोल शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण कैसे होता है?
आज के समय में विज्ञान इतना आगे बढ़ चुका है। कि उसने बहुत से रहस्य से पर्दा उठाया है। हमारे ब्रह्मांड में घटित होने वाली ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं। जिनका रहस्य विज्ञान के माध्यम से खुला है, परंतु ऐसा भी नहीं कह सकते कि विज्ञान से पहले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण से संबंधित संपूर्ण तथ्य काल्पनिक थे। भारत के खगोल वादियों के द्वारा इस रहस्य से पर्दा बहुत पहले उठा दिया गया था। भारत के प्राचीन खगोल वादियों के द्वारा हमारे सौरमंडल को बहुत अच्छे से समझा गया था।
भारत के खगोल शास्त्र के अनुसार इस बात को पहले ही लिख दिया गया है कि सूर्य ग्रहण कैसे लगता है? प्राचीन समय में जहां पूरा विश्व सूर्यग्रहण को लेकर अपनी-अपनी अलग-अलग कहानियां और कल्पनाएं रखता था। वही भारत में सिद्धांत शिरोमणि, सूर्य सिद्धांत और ग्रहलाधव जैसे भारतीय खगोल शास्त्र के द्वारा प्रसिद्ध ग्रंथों सूर्य ग्रहण का वैज्ञानिक वर्णन किया जा चुका था। ग्रहलाधव के चौथे अध्याय के चौथे श्लोक में एक मंत्र “छादयत्यर्कमिन्दुर्विधं भूमिभाः” लिखा है। जिसके अंतर्गत ग्रहण का वर्णन किया गया है।
इसके अनुसार बताया गया है की जब सूर्य और भूमि के मध्य में चंद्रमा आ जाता है। तब सूर्य ग्रहण लगता है अर्थात जब चंद्रमा की छाया भूमि पर पड़ती है, तो उसे सूर्यग्रहण कहते हैं। इसी प्रकार अन्य सिद्धांत शिरोमणि और सूर्य सिद्धांत जैसे ग्रंथ भी सूर्य ग्रहण के बारे में यही जानकारी देते हैं। इसके अनुसार हम कह सकते हैं कि प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र के द्वारा सूर्य ग्रहण के बारे में पहले ही बता दिया गया था, परंतु इस ज्यादा महत्व नहीं दिया गया।
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर सूर्य ग्रहण कैसे होता है?
दोस्तों, हम आपको बता दें कि पौराणिक मान्यताओं के आधार पर भी सूर्य ग्रहण के बारे में व्याख्या की गई है। इन मान्यताओं के अनुसार विष्णु पुराण की कथा में सूर्य ग्रहण कैसे होता है, इसके बारे में बताया गया है। हम सब जानते हैं कि आदिकाल के समय में देवों और असुरों के बीच बहुत बड़ा युद्ध छिड़ा था। तभी भगवान विष्णु के द्वारा इस युद्ध को रोकने हेतु समुद्र मंथन का विचार प्रस्तुत किया गया था।
इसके अनुसार तय किया गया कि संबंध मंथन से जो भी निकलेगा। उसे देवताओं और असुरों में आधा-आधा बांट दिया जाएगा। तभी इस मंथन के बाद समुद्र से 14 रत्न उत्पन्न हुए थे। जिसमें से एक रतन में अमृत निकला था। इस अमृत के लिए देवताओं और असुरों में फिर से लड़ाई होने लगी। जिसके समाधान हेतु सभी विष्णु भगवान के पास गए।
कथा के अनुसार कहा जाता है कि विष्णु भगवान के द्वारा मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं को अमृत तथा असुरों को खाली जल पिलाया गया था। इसमें से एक असुर राहु जिसको इस बात का पता चल गया था और उसने देवता का रूप धारण कर अमृत पी लिया था। राहु की यह चतुराई सूर्य देव व चंद्रदेव ने जान ली थी।
यह बात उन्होंने विष्णु भगवान को बताई, तो विष्णु भगवान के द्वारा अपने सु दर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया गया था। तब तक राहु के गले तक अमृत की कुछ बूंदे पहुंच गई थी। जिस कारण मरने के बाद भी वह जीवित रहा। उसके सर को राहु और उसके धड़ को केतु कहा जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि राहु सूर्य और चंद्र को ग्रहण लगाता है।
सूर्य ग्रहण क्यों नहीं देखना चाहिए?
दोस्तों, आपने अपने बुजुर्गों से सुना होगा कि सूर्य ग्रहण के समय सूर्य को नहीं देखना चाहिए। परंतु आप लोगों के मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि ऐसा क्यों है? तो हम आपको यहां इसके बारे में जानकारी देंगे। बिना किसी सोलर फिल्टर के सूर्य ग्रहण को देखने से हमारी आंखें जल सकती है।
जिस कारण आपकी आंखों को स्थाई या अस्थाई दृष्टि हानि का सामना करना पड़ सकता है। सूर्य ग्रहण से हानि होने पर आपको अंधापन भी हो सकता है। सूर्य ग्रहण को कभी भी सीधे आंखों से नहीं देखना चाहिए। वेदों के अनुसार भी सूर्य ग्रहण के समय घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध है।
इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण आंखों को हानि होने से होता है। दोस्तों, आंशिक सूर्यग्रहण और वलयाकार सूर्यग्रहण अधिकतम डेढ़ से 2 घंटे तक हो सकता है। जबकि पूर्ण सूर्यग्रहण अधिकतम 7 मिनट का होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण विश्व के सभी हिस्सों में नहीं दिखाई देता है।
भारतीय खगोल शास्त्र के अनुसार ग्रहण का समय :-
दोस्तों, भारतीय खगोल शास्त्र के अनुसार देखा जाए, तो 18 साल 18 दिन में 41 सूर्य ग्रहण पड़ने होते है तथा इतने समय में 29 चंद्रग्रहण पड़ते हैं। इसी अनुसार 1 वर्ष में पांच सूर्य ग्रहण और २ चंद्र ग्रहण पड़ सकते हैं। परंतु 1 साल में कम से कम दो सूर्य ग्रहण पड़ने ही चाहिए। दोस्तों, साधारणता सूर्य ग्रहण से अधिक चंद्रग्रहण देखने को मिलते हैं। वास्तविकता को देखा जाए, तो चंद्रग्रहण से अधिक सूर्यग्रहण होते हैं।
कुंडली में सूर्य ग्रहण का असर?
दोस्तों, आइए जानते हैं कि कुंडली में सूर्य ग्रहण का किस प्रकार प्रभाव पड़ता है। यदि कुंडली के अंतर्गत राहु सूर्य के साथ बैठा होता है, तो जन्म कुंडली के अंतर्गत सूर्य ग्रहण दोष बनता है। ठीक इसी प्रकार यदि राहु चंद्रमा के साथ बैठा होता है, तो कुंडली में चंद्र ग्रहण दोष बनता है। बहुत से ऐसे लोग होते हैं। जिनके अंतर्गत इस प्रकार के दोष पाए जाते हैं। उन्हें इस प्रकार के दोष हेतु निवारण करने चाहिए।
सूर्य ग्रहण कब होता है? इससे संबंधित प्रश्न व उत्तर (FAQs):-
Q:- 1. सूर्य ग्रहणकब होता है?
Ans:- 1. दोस्तों, सूर्यग्रहण एक प्राकृतिक स्थिति है। परंतु इसकी बहुत सी कहानियां हम लोगों के बीच में प्रचलित है। वैज्ञानिकों के अनुसार कहा जाता है कि जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है। तो सूर्य ग्रहण लगता है।
Q:- 2. सूर्य ग्रहण क्यों लगता है?
Ans:- 2. दोस्तों, सूर्य ब्रह्मांड में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत तथा सबसे बड़ा तारा है। इसके चारों ओर हमारी पृथ्वी परिक्रमा करती है तथा हमारी पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा पर इतना करता है। जो कि पृथ्वी का उपग्रह है, इसी परिक्रमा पथ पर जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है। तो सूर्य ग्रहण लगता है।
Q:- 3. सूर्य ग्रहण कितने प्रकार का होता है?
Ans – 3. दोस्तों सूर्य ग्रहण मुख्यतः तीन प्रकार का होता है। 1:- पूर्ण सूर्य ग्रहण, 2:- आंशिक सूर्य ग्रहण, 3:- वलयाकार सूर्य ग्रहण
Q:- 4. सूर्य ग्रहण कितने समय की अवधि तक रहता है?
Ans:- 4. दोस्तों, सूर्य ग्रहण की अवधि की बात की जाए, तो सूर्य ग्रहण सामान्यता अधिकतम डेढ़ घंटे से लेकर 2 घंटे तक हो सकता है। जबकि यदि पूर्ण सूर्य ग्रहण की बात की जाए, तो यह अधिकतम 7 मिनट तक ही होता है।
Q:- 5. 1 साल के अंतर्गत कितने सूर्य ग्रहण पड़ने चाहिए?
Ans:- 5. भारतीय खगोल शास्त्र के अनुसार 18 साल पर 18 दिन के अंतर्गत 41 सूर्य ग्रहण और 29 चंद्र ग्रहण पड़ने चाहिए। जबकि 1 साल में 5 सूर्य ग्रहण हो सकते हैं। लेकिन 1 वर्ष में कम से कम दो सूर्य ग्रहण पड़ने ही चाहिए।
Q:- 6. सूर्य ग्रहण के समय सूर्य को देखना क्यों मना है?
Ans:- 6. सूर्य ग्रहण के समय यदि कोई व्यक्ति नंगी आंखों से सूर्य को देखता है, तो उसकी दृष्टि स्थाई या अस्थाई रूप से प्रभाव में आ सकती है। इसीलिए बिना फिल्टर के सूर्य को नहीं देखना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्तियों को अंधापन का सामना भी करना पड़ सकता है।
Q:- 7. कुंडली में सूर्य ग्रहण दोष कैसे पैदा होता है?
Ans:- 7. दोस्तों, यदि कुंडली के अंतर्गत राहु सूर्य के साथ बैठा होता है। तो कुंडली में “सूर्य ग्रहण दोष” पैदा होता है। ठीक इसी प्रकार चंद्रग्रहण भी कुंडली में बन सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion):-
आज हमने आप सभी को अपनी इस ब्लॉग पोस्ट के अंतर्गत Surya grahan kab hota hai? Surya grahan kaise hota hai? आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तारपूर्वक बताई है। आप सभी के मन में पूर्वजों के द्वारा सूर्य ग्रहण से संबंधित बताई गई पौराणिक कथाएं तथा मिथ विराजमान है, परंतु हमारे इस लेख में आपको विज्ञान से संबंधित तथ्य दिए गए हैं।
जो सभी मिथ को तोड़ते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आप सभी को हमारे द्वारा दी गई यह संपूर्ण जानकारी बेहद पसंद आई होगी। यदि आप सभी को हमारी यह संपूर्ण जानकारी लाभदायक लगे, तो आप हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर बताना मत भूलिए तथा इस प्रकार की जानकारी को अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करें।