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Swami Vivekananda biography in Hindi
सन् 1821 की बात है जब एक प्रोफेसर ने एक छात्र से पूछा ये धरती ये ब्रह्मांड ये आकाश, क्या ये सब भगवान ने बनाया है तो उस छात्र ने जवाब दिया हाँ।
प्रोफेसर साहब ने दोबारा पूछा तो फिर ये शैतान को किसने बनाया है? क्या शैतान को भी इंसान ने बनाया है? तब उस छात्र ने कोई जवाब नहीं दिया।
लेकिन वह छात्र ने प्रोफ़ेसर से एक सवाल पूछने की अनुमति मांगी। प्रोफेसर ने अनुमति दी तो उस छात्र ने पूछा कि क्या ब्रह्मांड का कोई वजूद है? प्रोफेसर ने जवाब दिया कि हाँ है, क्यूं तुम्हें ठंड का एहसास नहीं हो रहा?
तो छात्र ने कहा क्षमा कीजिए सर लेकिन आपने गलत जवाब दिया ठंड तो बस इसीलिए लग रही है क्यूंकि यहां पर उष्मा या गर्मी की अनुपस्थिति है। उस छात्र ने दोबारा एक प्रश्न किया कि क्या अन्धकार या अंधेरे का कोई आस्तित्व है? प्रोफेसर ने फिर से कहा कि हाँ है।रात होने पर अंधेरा ही तो होता है।
छात्र ने दोबारा कहा कि सर आप फिर से गलत है अन्धकार जैसी किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है, अन्धकार तो बस प्रकाश की अनुपस्थिति है।
हम हमेशा प्रकाश और उष्मा के बारे में पढ़ते है, ठंड या अंधेरे के बारे में नहीं।ठीक उसी तरह शैतान का भी कोई अस्तित्व नहीं है वो तो बस प्यार, विश्वास और ईश्वर में आस्था की अनुपस्थिति का अहसास है। इस तरह की सोच रखने वाले कोई और नहीं स्वामी विवेकानंद जी थे।
आइए जानते हैं कि भारतीय संस्कृति की पूरे विश्व में जान पहचान कराने वाले स्वामी विवेकानंद जी के बारे में।
Biography of Swami Vivekananda in Hindi
Swami Vivekananda |
स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त था, इनका जन्म पश्चिम बंगाल कोलकाता के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनके 9 भाई बहन थे, इनके पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता कोर्ट में वकालत करते थे।
विवेकानंद की माता भुवनेश्वरी देवी सरल और धार्मिक विचारों वाली महिला थी। स्वामी विवेकानंद के दादा दुर्गा दत्त संस्कृत और फारसी के विद्वान थे जिन्होंने 25 वर्ष की उम्र में ही अपना घर और परिवार को त्याग कर सन्यासी जीवन स्वीकारा था।
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही शरारती और कुशाग्र बुद्धि के बालक थे, उनके माता पिता को कई बार उनको समझाने और संभालने में बहुत परेशानी होती थी। बचपन में उन्हें वेद, उपनिषद्, भागवत, रामायण और वेदांत अपनी माता से सुनने का शौख था और योग और कुश्ती में विशेष रुचि थी।
स्वामी विवेकानंद 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज की entrance exam में 1st division लाने वाले प्रथम विद्यार्थी थे। उन्होनें पश्चिमी तर्क, जीवन और यूरोपीय इतिहास की पढ़ाई जनरल असेंबली इंस्टीट्यूट से की।
1881 में उन्होने ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में स्नातक की परीक्षा पास की। स्वामी विवेकानंद ने डेविड ह्यूम जैसे महान वैग्यानिक और दक्षिण शास्त्र के बारे में अच्छा खासा अध्ययन कर रखा था।
स्वामी विवेकानंद हार्बरट के सिद्धांत से प्रभावित थे, वे उन्हीं के जैसे बनना चाहते थे।
उन्होने हार्बरट की किताब को बंगाली भाषा में प्रकाशित किया है। जनरल असेंबली संस्था के अध्यक्ष विलियम ने यह लिखा था कि स्वामी विवेकानंद सच में बहुत होशियार है, मैंने कई यात्रा की बहुत दूर तक गया लेकिन मैं और जर्मन विश्वविद्यालय के सभी छात्र कभी भी स्वामी विवेकानंद के आगे नहीं जा सके।
उनके पिता को वेस्टर्न कल्चर पसंद था इसीलिए वो स्वामी विवेकानंद को उसी कल्चर की शिक्षा देकर उस रूप में ढालना चाहते थे लेकिन नियति को तो कुछ और पसंद था। उनके पिता की 1884 में मौत हो गई और परिवार दिवालिया हो गया।
साहूकार दिए हुए कर्जे की माँग कर रहे थे और उनके रिश्तेदारों ने भी उनके पूर्वजों के घर से उनके अधिकारों को हटा दिया था। मुसीबत के इस दौर में स्वामी विवेकानंद कोई काम ढूंढने में लग गए और भगवान के होने का अस्तित्व होने का प्रश्न उनके सामने आया।
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जहाँ रामकृष्ण परमहंस के पास उन्हें तसल्ली मिली और उन्होने दक्षिनेश्वर जाने का फैसला लिया। 1885 में रामकृष्ण को गले का कैंसर हो गया और विवेकानंद और उनके अन्य साथियों ने उनके अंतिम दिनों में उनकी खूब सेवा की।
रामकृष्ण ने अपने अंतिम दिनों में उन्हे सिखाया कि मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी सेवा है। रामकृष्ण ने विवेकानंद को अपने मठ वासियों का ध्यान रखने को कहा और अपना उत्तराधिकारी तय किया।
1886 में रामकृष्ण का निधन हो गया। सन् 1893 में अमेरीका के शिकागो शहर में विश्व धर्म परिषद् का आयोजन किया गया जहां पर विवेकानंद ने ऐतिहासिक भाषण दिया।
स्वामी विवेकानंद जी का विदेश भ्रमण-
विवेकानंद के शुरुवाती संबोधन sisters And brothers of America कहते हीं वहां उपस्थित 6000 विद्वानों ने लगातर 2 मिनट तक तालियाँ बजायी। अगले दिन के सभी अखबारों ने यह घोषणा की स्वामी विवेकानंद का भाषण सबसे सफल भाषण था जिसके बाद सारा अमेरीका स्वामी विवेकानंद और भारतीय संस्कृति को जानने लगी।
इससे पहले अमेरीका पर इस तरह का प्रभाव कभी नहीं हुआ था। विवेकानंद 2 साल तक वहाँ रहे, इन दो सालों में उन्होने भारत के हिन्दुत्व धर्म का संदेश वहाँ के लोगों तक पहुँचाया।
अमेरिका के बाद स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड गए,वहां की मरग्रेट नॉवल उनकी शिष्य बनी जो बाद में sister nivedita के नाम से प्रसिध्द हुई।
1897 में उन्होने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। दुनिया के सभी धर्म सत्य है और वह एक ही द्वार पर जाने के अलग अलग रास्ते है, ऐसा रामकृष्ण मिशन की शिक्षा थी।
स्वामी विवेकानंद के आखिरी दिन-
4 जुलाई 1910 को स्वामी विवेकानंद ने महा समाधि लेकर अपने जीवन का त्याग किया जिसकी भविष्यवाणी उन्होने पहले ही कर दी थी कि वह 40 वर्ष से ज्यादा नहीं जियेंगे।
अपनी मृत्यु के पहले स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही संपूर्ण भारत भ्रमण किया और एक सन्यासी जीवन यापन किया। अगर विवेकानंद चाहते तो अपनी पूरी जीवन अमेरिका या यूरोप के किसी शहर में बहुत आसानी से गुजार सकते थे लेकिन उन्होने अपनी आत्मकथा में कहा है कि मैं एक सन्यासी हूँ और हे! भारत देश तुम्हारी सारी कमजोरियों के बाद भी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं।
स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से प्रभावित होकर कई महान हस्ती जैसे नरेंद्र मोदी ने उनके द्वारा दिए गए ग्यान को अपनाया और सन्यासी की तरह जीवन यापन किया।
एक इंसान जिसने सारे बंधको को तोड़कर, सारे सुख सुविधाओं को छोड़कर अपने देश को चुना।
उठो जागो और भागो और तब तक ना रुको जब तक अपने लक्ष्य को हासिल ना कर पाओ।
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