ब्लू बेबी सिंड्रोम किसे कहा जाता है? | What is Blue Baby syndrome

माता के गर्भवती होने के समय उसके द्वारा की जाने वाली गतिविधियां उसके भ्रूण को पूर्णता प्रभावित करती हैं। इसलिए गर्भवती महिला को अपना बहुत ध्यान रखना पड़ता है। गर्भवती महिला के द्वारा की गई एक गलती उसके भ्रूण को परेशानी में डाल देती है। उसी प्रकार की एक बीमारी ब्लू बेबी सिंड्रोम है जो अक्सर बच्चों में पाया जाता है लेकिन यह क्या है (Blue baby syndrome kya hai?)उसके विषय में जानकारी नहीं होती।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको ब्लू बेबी सिंड्रोम (Blue baby syndrome ki jaankari) के विषय में जानकारी देंगे। यदि आप भी इस विषय में जानकारी चाहते हैं तो हमारे आर्टिकल को अंत तक पढ़े।

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ब्लू बेबी सिंड्रोम क्या है और यह कितना आम है?

ब्लू बेबी सिंड्रोम एक घातक (Blue baby symdrome kya hai?)बीमारी होती है। यह बच्चों में पाई जाती है। ब्लू बेबी सिंड्रोम में बच्चे के अंदर पाए जाने वाला हीमोग्लोबिन प्रभावित होता है जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन को ट्रांसफर करने में मदद करता है।

ब्लू बेबी सिंड्रोम किसे कहा जाता है? | What is Blue Baby syndrome

 यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शिशु के लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन (रक्त में मौजूद प्रोटीन) मेथेमोग्लोबिनेमिया (केमिकल कंपाउंड) में बदल जाता है। मेथेमोग्लोबिनेमिया ऑक्सीजन को शरीर में पहुंचाने में बाधा उत्पन्न करता है। इसलिए इस बीमारी में को साइनैप्सिस का कारण बन जाता है। इसमें शिशु की त्वचा का रंग नीला ग्रे हो जाता है।

ब्लू बेबी सिंड्रोम बहुत कम बच्चों में पाया जाता है अगर शरीर में मेथेमोग्लोबिनेमिया का स्तर 50% से अधिक हो जाता है। तो बच्चा कोमा में अभी जा सकता है। इसलिए ब्लू बेबी सिंड्रोम की पहचान होने पर बच्चे को तुरंत इलाज की जरूरत होती है जिससे इस पिगमेंट का स्तर शरीर में और ना बढ़े।

बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने के कारण

बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम होने (Blue baby syndrome ke reason) का मुख्य कारण मेथेमोग्लोबिनेमिया होता है। यह शरीर में हीमोग्लोबिन को ऑक्सीजन पहुंचाने से रूप देता है। और शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ब्लू बेबी सिंड्रोम होने के कुछ अन्य कारण नीचे स्पष्ट किए गए हैं।

नाइट्रेट का सेवन-

यदि सब्जी और पानी के माध्यम से शरीर में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। तो शरीर में मेथेमोग्लोबिनेमिया की अधिकता हो जाती है। और यह शरीर में ऑक्सीजन को शरीर के हर अंग तक पहुंचाने से रोकती है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को रखे हुए पानी का सेवन नहीं करना चाहिए और गर्भवती महिलाओं को ऐसे बच्चे से दूर रखना चाहिए।

वंशानुगत (Genetic)-

यह समस्या वंशानुगत भी हो सकती है। यदि परिवार में पहले से किसी सदस्य को ब्लू बेबी सिंड्रोम है। तो बच्चे को यह समस्या होने की संभावना होती है। ब्लू बेबी सिंड्रोम वंशानुगत बहुत कम होता है लेकिन इसके होने की संभावना रहती है। इसलिए डॉक्टर से संपर्क करके इसके वंशानुगत प्रभावों के विषय में अच्छे से जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।

साइनोटिक हार्ट डिजीज (Cyanotic Heart Disease)-

ब्लू बेबी सिंड्रोम में बच्चे को दिल की समस्या होती है। इसमें मुख्यता दिल की समस्याओं में बच्चे के दिल को ऑक्सीजन पूरी तरीके से प्राप्त नहीं हो पाती। दिल में ऑक्सीजन पूरी तरीके से प्राप्त ना होने का कारण व्यक्ति के रक्त में ऑक्सीजन की कमी का कारण है।इस अवस्था में त्वचा का रंग और म्यूकस मेम्ब्रेन (एक तरह की झिल्ली) नीली हो जाती है।

बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम होने के लक्षण

बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम होने के (Blue baby syndrome ke symptom) कुछ लक्षण दिखाई देते हैं। जिनके दिखाई देने पर हमें तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए क्योंकि यह समस्या बहुत गंभीर होती है।

  • त्वचा के रंग में परिवर्तन।
  • त्वचा में जलन।
  • स्तनपान करने में समस्या होना।
  • ठीक से वजन नहीं बढ़ पाना।
  • तेजी से दिल का धड़कन या श्वास लेना।
  • उलटी।
  • दस्त।
  • सांस लेने में समस्या।

ब्लू बेबी सिंड्रोम का निदान

ब्लू बेबी सिंड्रोम को ठीक करने के (Blue baby syndrome ke nidaan) लिए कुछ जरूरी थैरेपीज बताई गई है। जिनके माध्यम से ब्लू बेबी सिंड्रोम को ठीक किया जा सकता है।जिसके विषय में जानकारी नीचे पॉइंट के माध्यम से आपको प्रदान की गई है।

फिजिकल चैकअप :

फिजिकल चेकअप का अर्थ शारीरिक जांच होता है। इसमें डॉक्टर रोग से ग्रस्त बच्चे की शारीरिक जांच करते हैं कि बच्चे के अंदर ब्लू बेबी सिंड्रोम का प्रकोप कितना है।

इस चैकअप में डॉक्टर मरीज की हृदय गति और सांस लेने क्षमता पर ध्यान देते हैं। फिजिकल चैकअप के माध्यम से मरीज के अंदर ब्लू बेबी सिंड्रोम की सारी स्थितियों के विषय में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।

रक्त की जांच :

यदि फिजिकल चेकअप से शिशु की ब्लू बेबी सिंड्रोम के स्तर का पता नहीं चलता तो डॉक्टर शिशु की रक्त की जांच करते हैं। शिशु के रक्त में यदि मेटा हिमोग्लोबिन और नाइट्रेट की अधिकता पाई जाती है तो इसका यह अर्थ होता है।

 कि बच्चा ब्लू बेबी सिंड्रोम से ग्रसित है। यदि किसी शिशु के शरीर का रंग जन्म के समय ही नीला है। तब डॉक्टर पल्स ऑक्सीमीटर से शिशु के शरीर में ऑक्सीजन की जांच करते हैं। रक्त की जांच से शिशु के ब्लू बेबी सिंड्रोम होने का पूरा पता लग जाता है और डॉक्टर को किस प्रकार सुजुका इलाज करना है इसके विषय में भी जानकारी प्राप्त हो जाती है।

इकोकार्डियोग्राम-

यह ऐसा टेस्ट होता है जिसमें हार्ट से जुड़ी समस्याओं का पता लगाया जाता है। हार्ट से जुड़ी समस्याओं के कारण ही ब्लू बेबी सिंड्रोम बनता है यह एक ऐसा परीक्षण है। जिसमें अल्ट्रासाउंड की मदद से हृदय की तस्वीर बनाई जाती है।

 और उसकी जांच की जाती है इकोकार्डियोग्राम का होना जरूरी होता है। क्योंकि हृदय की बीमारी पता लगाने के बाद ही आप बच्चे के अंदर ब्लू बेबी सिंड्रोम का पता लगा सकते हैं और उसे ठीक कर सकते हैं।

ब्लू बेबी सिंड्रोम का इलाज

नीचे हेडिंग के माध्यम से हमने (Blue baby syndrome ka illaj) आपको जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। जिससे आप कभी भी अपने ब्लू बेबी सिंड्रोम ग्रसित बच्चे का इलाज कर सके।

मेथिलीन ब्लू –

मैथिली ब्लू का इस्तेमाल ब्लू बेबी सिंड्रोम को ठीक करने में किया जाता है। मेथिलीन ब्लू (एक तरह की दवाई) के उपयोग करने पर मेथेमोग्लोबिनेमिया के इलाज में मदद मिल सकती है। मेथिलीन ब्लू हीमोग्लोबिन को कम होने से भी रोकने का काम करता है, ताकि रक्त में ऑक्सीजन को बनाए रखें जिससे शरीर में ऑक्सीजन की क्षमता को बनाए रख सके। इसलिए, ब्लू बेबी सिंड्रोम के इलाज में मैथिली में ब्लू का  मदद मिल सकती है।

बाइकार्बोनेट –

बाइकार्बोनेट शरीर में दवाई और आहार के माध्यम से पहुंचता है। दवाई और आहार के माध्यम से बाय कार्बोनेट इस्तेमाल करने से शरीर में ब्लू बेबी सिंड्रोम होने में कमी आती बाई कार्बोनेट देने का इलाज डॉक्टर अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी कर सकते हैं।

 इसलिए बच्चे को बाइकार्बोनेट का सेवन ब्लू बेबी सिंड्रोम के इलाज के लिए करवाना चाहिए डॉक्टर बाइकार्बोनेट को बच्चे को घर में देने की सलाह भी दे सकते हैं।

इंट्रावेनस फ्लूइड –

जैसा जिसके नाम के अनुरूप बताया गया है। यह एक प्रकार का फ्लुइड होता है। जिससे ग्रुप के माध्यम से शरीर किस वर्ष में पहुंचाया जाता है। फ्लुइड शरीर में हीमोग्लोबिन को बनाए रखने में मदद जिससे ऑक्सीजन शरीर के सभी अंगों को प्राप्त होते हैं।

बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने से कैसे बचाएं

बच्चों को ब्लू बेबी सिंड्रोम (Blue baby syndrome se kaise bache) से कैसे बचाया जाए सके। इसके विषय में नीचे पॉइंट के माध्यम से जानकारी प्रदान कि गई है।

कुएं के पानी के सेवन से बचाएं-

1 साल से कम उम्र के बच्चे को कुएं से पानी में नहीं नहलाना चाहिए और ना ही उसे कुएं का पानी पिलाना चाहिए। कुएं के पानी में नाइट्रेट की मात्रा 10 एमजी से अधिक होती है। और बच्चे के शरीर में यदि नाइट्रेट की मात्रा अधिक हो जाए तो उसे ब्लूबेरी समय होने की समस्या होती है। इसलिए 12 महीने तक बच्चे को कुएं के पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। 12 महीने से ज्यादा उम्र के बच्चे को आप कुएं का पानी पिला सकते हैं क्योंकि इसमें अन्य पौष्टिक आहार भी पाए जाते हैं।

नाइट्रेट युक्त खाद्य पदार्थों के उपयोग में कमी-

कुछ सब्जियां ऐसी होती है जिसमें नाइट्रिक युक्त पदार्थों की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। यदि बच्चे को लगातार इन सब्जियों का सेवन कराया जाता है। तो शरीर में नाइट्रेट की उपलब्धता बहुत अधिक हो जाती है। नाइट्रेट युक्त सब्जियां ब्रोकली कार्यपालक है 7 महीने तक बच्चे को इन सारी सब्जियों का सेवन नहीं कराना चाहिए। बच्चे को अन्य पौष्टिक आहार का सेवन कराना चाहिए तभी उसे ब्लू बेबी सिंड्रोम से बचाया जा सकता है।

गर्भावस्था के दौरान नशीली पदार्थ के सेवन न करें-

गर्भवती महिला को नशीले पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। यह गर्भ में पल रहे बच्चे को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। यह बच्चे के विकास को रोकता है और बच्चे में विभिन्न विभिन्न बीमारियां भी पैदा कर सकता है गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान ड्रग्स और नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए ।

बेबी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के लिए डॉक्टर क्या सलाह देते हैं?

ब्लू बेबी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के (Blue baby syndrome me doctors ki salah) लिए डॉक्टर निम्न सलाह देते हैं।

 जिसके माध्यम से ब्लू बेबी सिंड्रोम को कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है।

  • फॉर्मूला द्वारा दिए गए नाइट्रेट मुफ्त पानी का सेवन भी कर आना चाहिए। जिस पानी में अधिक नाइट्रेट पाई जाए उस पानी का सेवन बच्चों को नहीं कराना चाहिए।
  • शिशु को जन्म के पश्चात तुरंत सर्जरी कराने की सलाह नहीं देनी चाहिए। जन्म के तुरंत बाद सर्जरी कराने से बच्चे को ब्लू बेबी सिंड्रोम की शिकायत बन सकती है।
  • ब्लू बेबी सिंड्रोम का सबसे महत्वपूर्ण कारक मेटा हीमोग्लोबिन है। मेटा हीमोग्लोबिन को कम करने के पदार्थों का सेवन बच्चे को कराना चाहिए। जिससे उसके शरीर में ब्लू बेबी सिंड्रोम में कमी आए।
  • नाइट्रेट का सेवन कम करने के बारे में भी बच्चे को सलाह दे सकते हैं।

टॉपिक से संबंधित प्रश्न एवं उनके उत्तर (FAQ)

Q. ब्लू बेबी सिंड्रोम क्या है?

Q. ब्लू बेबी सिंड्रोम में बच्चे के अंदर किस चीज की कमी हो जाती है?

Q. क्या ब्लू बेबी सिंड्रोम बच्चों में पाई जाने वाली एक घातक बीमारी है?

Q. ब्लू बेबी सिंड्रोम को ठीक किया जा सकता है या नहीं?

निष्कर्ष :

इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको ब्लू बेबी सिंड्रोम किसे कहा जाता है (What is Blue Baby syndrome) देने का पूरा प्रयास किया है।यदि फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न है तो आप नीचे दिए हो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं।

हमारे आर्टिकल के द्वारा प्रदान की जाने वाली जानकारी बिल्कुल ठोस तथा सटीक होती है। यदि आपको हमारा आर्टिकल पसंद आए तो आप इसे अवश्य शेयर करें। हमारा आर्टिकल पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।

रिया आर्या

मैं शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश की रहने वाली हूँ। शुरू से ही मुझे डायरी लिखने में रुचि रही है। इसी रुचि को अपना प्रोफेशन बनाते हुए मैं पिछले 3 साल से ब्लॉग के ज़रिए लोगों को करियर संबधी जानकारी प्रदान कर रही हूँ।

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